SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 323
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 274 (4) श्री श्रेयांस जिन स्तवन (राग : ये मेरे प्यारे सनम) तुमे बहु मैत्री साहिबा, मारे तो मन एक रे, (२) तुम विण बीजो नवि गमे, ए मुज मोटी टेक रे, | श्री श्रेयांस कृपा करो रे (१) मन राखो तुमे सवि तणां, पण कीहां एक मळी जाओ रे, ललचावो लख लोकने, साथी सहेज न थाओ रे,....श्री० (२) रागभरे जनमन रहो, पण तिहुं काल विराग रे, चित तुमारो समुद्रनो, कोई न पामे ताग रे,....श्री० (३) एहवा शुं चित मेळव्युं, केळव्युं पहेलां न कांई रे, सेवक निपट अबुझ छो, निर्वहेशो तुमे सांई रे....श्री० (४) निरागी शं किम मिले पण, मिलवानो एकांत, वाचक यश कहे मुज मिल्यो, भक्ते कामणवंत रे (५) (5) श्री श्रेयांस जिन स्तवन (आनंदधनजी कृत स्तवन) श्री श्रेयांसजिन अंतरजामी, आतमरामी नामी रे; अध्यातम मत पूरण पामी, सहज मुक्ति गति गामी रे | श्री०। १ सयल संसारी इन्द्रिय रामी, मुनिगण आतमरामी रे; मुख्यपणे जे आतमरामी, ते केवळ निःकामी रे । श्री०। २ निज स्वरूपे जे किरिया साधे, ते अध्यातम लहिये रे; जे किरिया करी चउगति साधे, ते न अध्यातम कहिये रे । श्री०। ३ नाम अध्यातम ठवण अध्यातम, द्रव्य अध्यातम छंडो रे; भाव अध्यातम निज गुण साधे, तो तेहशुं रढ मंडो रे | श्री०। ४ शब्द अध्यातम अरथ सुणीने, निर्विकल्प आदरजो रे; शब्द अध्यातम भजना जाणी, दानग्रहण मति धरजो रे ।श्री०। ५ अध्यातम जे वस्तु विचारी, बीजा जाण लबासी रे; वस्तुगते जे वस्तु प्रकाशे, आनंदघन मतवासी रे । श्री०। ६ (6) श्री श्रेयांस जिन स्तवन (परमातम पूरण कला) .. श्री श्रेयांस जिनेसरू, सेवकनी हो करजो संभाळ तो। रखे विसारी मूकता, होय मोटा हो जगे दिन दयाल तो श्री० १ मुज सरीखा छे ताहरे, सेवकनी हो बहु कोडाकोड तो। पण जे सुनजरे निरखीयो, किम दीजे हो प्रभु तेहने छोडतो श्री० २ मुजने हेज छे अति घj, प्रभु तुमथी हो जाणुं निरधार तो। तो तुं निपट निरागीयो, हुं रागी हो ए वचन विचार तो श्री०
SR No.032195
Book TitlePrachin Chaityavandan Stuti Stavan Parvtithi Dhalo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDinmanishreeji
PublisherDhanesh Pukhrajji Sakaria
Publication Year2001
Total Pages634
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy