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________________ 265 जिनराजोजी, पुष्टालंबन करतां जगगुरु, सिध्यां सेवक काजोजी,....(७) नाम जपंता रे सवि मळे, स्तवतां कारज सिद्धोजी, जिन उत्तम पद पंकज सेवतां, 'रतन' लहे नवनिधोजी....(८) (5) श्री सुविधिनाथ जिन स्तवन (राग - ओली चंदन बाळाने....) ___ लाग्यो लाग्यो प्रभु शुं नेहरे (२) वसीयो हइडामां, मारो साहिबो अति ससनेह (२) वसीयो हइडामां....(१) दर्शन प्रभुजीनुं देखतां रे, जोतां मुखनी ज्योत रे, दुरित पडल दूरे कर्या रे वारी, प्रगट्यो ज्ञान उद्योत रे....वसीयो० (२) सुरत मनडामां वसी रे, कागळ जिम चित्राम रात-दिवस सूतां जागतां रे, हुं तो नित समरूं प्रभु नामरे,....वसीयो० (३) जेहना मनमां जेह वस्यां रे, तेहने तेह शुं नेह रे, मधुकरने मन मालती रे, जिम मोर तणे मन मेह रे....वसीयो० (४) देव अवर देखी घणा रे, किहां न माने मन्न रे, प्रभुगुण सांकळे सांकल्यो तो आलोये नहि अन्न....वसीयो० (५) साहिब सुविधि जिणंदनी रे, हुं चाहं भवोभव सेव रे, हंसरतन कहे माहरे कांई, लागी एह ज टेव रे....वसीयो० (६) (6) श्री सुविधिनाथ जिन स्तवन (स्वामी तुमे कांई कामण कीg) __ अरज सुणो एक सुविधि जिनेसर,। परम कृपानिधि तुं परमेसर, । साहिबा सुज्ञानी जोवो तो। वात छे मान्यानी,। कहेवाओ पंचम चरणना धारी, किम आदरी अश्वनी असवारी,। सा० १ छो त्यागी शिववास वसो छो, सुग्रीव सुत रथे किम बेसो छो, । आंगी प्रमुख परिग्रहमां पडशो, हरि हरादिकने किणविध नडशो,। सा० २ धुरथी सकल संसार निवार्यो, किम फरी देव द्रव्यादिक धार्यो,। तजी संजमने थाशो गृहवासी, कुण आशातना तजशे चोराशी, सा० ३ समकित मिथ्यामतमें निरंतर, इम किम भांजशे प्रभुजी अंतर, लोक तो देखशे तेहबुं कहेशे,। इम जिनता तुम किणविध रहेशे। सा० ४ पण हवे शास्त्र गते मति पहोंची, तेहथी में जोडे उंडे आलोची। इम कीधे तुम प्रभुताई न घटे, साहमुं इम अनुभव गुण प्रगटे । सा० ५ हय गय यद्यपि तुं आरोपाए, तो पण सिद्धपणुं न लोपाए। जिम मुगुटादिक भूषण कहेवाये, पण कंचननी कंचनता न जाये,। सा० ६
SR No.032195
Book TitlePrachin Chaityavandan Stuti Stavan Parvtithi Dhalo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDinmanishreeji
PublisherDhanesh Pukhrajji Sakaria
Publication Year2001
Total Pages634
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size14 MB
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