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________________ 249 साहिब ते सांभरे, क्षणमांहे कोटिवार रे... सनेहि वारी हुं सुमति जिणंदनी-9 प्रभु थोडा बोला ने निपुण घणा, ए तो कार्य अनंत करनार रे, ओलग जेहनी जेवडी, फळ तेहवा तस देनार रे... मारा० २ प्रभु अति धीरो लाजे भर्यो, जिम सिंच्यो सुकृत घनसार रे, एक ज करुणानी ल्हेरमां सुनिवाजे करे निहाल रे... मारा० ३ प्रभु भवस्थिति पाके भक्तने, फळ आपे हो सुपसाय रे, ऋतु विण कहो किम तरूवरे, फळ पाकीने सुंदर थाय रे मारा० ४ अति भूख्यो पण शुं करे, कांई बेउ हाथे न जमाय रे, दास तणी उतावळे, प्रभु किणविध रीइयो जाय रे मारा० ५ प्रभु लेखित होय ते लावीये, मन मान्यो महाराज रे, फळतो सेवाथी संप जे, विण खणे न भांजे खाज रे मारा० ६ प्रभु विसर्या नवि विसरे, सामुं अधिक होये नहि । मोहन कहे कवि रूपनो, मुज वहाला छे जिनवर एहरे... मारा० ७ ( 5 ) श्री सुमतिनाथ जिन स्तवन सुमतिजिणंद जयकारी प्रभुजी तोरा जिनजी तोरा, नामनी जाउं बलिहारी, व्हालाजी तारा नामनी जाउं बलिहारी, लोकोतर मुद्रा ताहरी, शांत पुंज मय सोहे, शुक्लध्यान धारा रस लीनो, देखी सुरनर मोहे० (२) १ घनघाती चकचुर करी प्रभु, केवल कमला पामी, चार निकाय मली सुर करता, समवसरण मनोहारी प्रभु० (२) २ त्रिगडे त्रिभुवन नाथ बिराजे, करूणा जलहल धारी, अरिहंत पद प्रभु ठकुराईनो भोगी, देशना दिये हितकारी० । प्रभु० (२) ३ अमृत झरणी मिथ्यातम तरणी, नय गर्भित अति गाजे, मानु अषाढो मेहुलो वरशे, भवि मन संशय भांजे ० । (२) प्रभु० ४ कोडी गमे सुर सेवा करता, चिदानंद चिरंजीवो बोले, ए ठकुराई तुजने छाजे, अवर नहि तस तोले० । ५ कमलविजयनो मोहन पभणे, प्रभु नामे जयकारी, जाप जपंता पातिक जाये, नित नित मंगलकारी० (२) प्रभु० ६ (6) श्री सुमतिनाथ जिन स्तवन ( राग : बेनारे) मन मारूं लागी रह्युं, दिलमारू लागी रह्युं, चित्त मारूं लागी रह्युं रे, सुमति जिणंदशुं० १ धन्य धन्य दिवस आजनो माहरो, धन्य धन्य घडी वळी जेह, धन्य धन्य समयजे वळी ताहरू, दरिशण दीठं नयणे नेह० मन०
SR No.032195
Book TitlePrachin Chaityavandan Stuti Stavan Parvtithi Dhalo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDinmanishreeji
PublisherDhanesh Pukhrajji Sakaria
Publication Year2001
Total Pages634
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size14 MB
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