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________________ 248 (2) श्री सुमतिनाथ जिन स्तवन रुप अनुप निहाली सुमति जिन ताहरु, छांडी चपल स्वभाव ठर्युं मन माहरु, रुपी सरुप न होत जो जग तुज दीसतुं, तो कुण उपर मन्न कहो अम हीसतुं,... रुप० ॥ १|| हीस्यां विण किम शुद्ध स्वभावने इच्छता, इच्छा विण तुज भाव प्रगट किम प्रीछता,... प्रीछयां विण किम ध्यान दशा मांही लावता, रुप० लाव्या विण रस स्वाद कहो किम पावता, रुप० ॥२॥ भक्ति विना विमुक्ति हुये कोई भक्तने, रुपी विना तो तेह हुये किम व्यक्तने, नव विलेपन माल प्रदिपनें धूंपणा,... नवनव भूषण भाल तिलक शिर खुंपणा, रुप० ||३|| अम सित पुण्यने योगे तुमे रुपी थया, अमृत समाणी वाणी धरमनी कही गया, तेह आलंबीने जीव घणाओ बुझीयां, भाविभावने ज्ञाने योगे अमो रीझीया, रुप० || ४ || ते माटे तुझ पिंड घणां गुण कारणो, सेव्यो ध्यायो हुये महाभय वारणो, शांतिविजय बुध शीस कहे भविकजना, प्रभुनुं पिंडस्थ ध्यान करो थई ओकमना रुप० ॥५॥ ( 3 ) श्री सुमतिनाथ जिन स्तवन ( राग यशोमति मैया ) सुमति जिनेश्वर प्रभु परमातम, तुं परमागम, तुं शुद्धातम साहिबा विनंती अवधारो, मोहना प्रभु पार उतारो; तुमे ज्ञानादिक गुणना दरिया, अनंत अक्षय निजभावमां भरीया... (१) तुम शब्दादिक गुण निःसंगी, अमे स्वप्ने पण तेहना संगी, तुम उत्तमगुण ठाणे चढिया, अमे कोहादिक कषाये नडिया...(२) अममति इन्द्रिय विषये राची, तुमे अनुभव रसमां रह्यां मांची, अमे मदमातंगनेवश पडिया, नवि तुमे ते तिलमात्र आभडीया... (३) तुमे जगशरण विनित सुजाण, तुमे जगगगन विकासक भाण, तुमे अकलंक अबीह अकोही, तुजसंगी न रागी न मोही... (४) अतिन्द्रिय स्वाद्वाद वागीश, सहजानंद गुण पज्जव इश, अलख अगोचर जिनजगदीश, अशरणनाथ नायक अमीश ... (५) ते माटे तुम चरणे विलग्यां, एक पलक नहिं रहीशुं अलगा, सौभाग्यलक्ष्मी सूरिगुण वाधे, जिन सेवे साध्यता साधे ... (६) (4) श्री सुमतिनाथ जिन स्तवन ( राग साजन मेरा उस पार ) मारा प्रभुजी शुं बांधी प्रीतडी, एतो जीवन जगआधार रे, साचो
SR No.032195
Book TitlePrachin Chaityavandan Stuti Stavan Parvtithi Dhalo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDinmanishreeji
PublisherDhanesh Pukhrajji Sakaria
Publication Year2001
Total Pages634
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size14 MB
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