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________________ 239 लीधुं हरी चटके, प्रभुजीनी साथे प्रीत करंता, कर्मतणी कस तटके,....(२) मुज मन लोभी भ्रमर तणी परे, प्रभु मुख कमले अटके, रत्न चिंतामणी मूकी राचे, कहो काचने कटके.....(३) ए जिन ध्याने क्रोधादिक कुण, आसपास आवतां अटके, केवलनाणी बहु गुण खाणी, कुमति कुगतिने पटके,.....(४) जे जिनवरने दिलमां न आणे, ते तो भूला भटके, प्रभुजीनी साथे ओळख करतां, वांछित सुखडा सटके,.....(५) मूर्ति श्री संभव जिनेश्वर केरी, जोतां हैडुं हरखे, नित्य लाभ कहे प्रभु कीर्ति मोटी, गुण गाउं हुं लटके.....(६) (6) श्री संभवनाथ जिन स्तवन (राग : शास्त्रीय) . सेवक नयणे निहाळो संभवजिन (२) अधम उध्धारण बिरुद तमाएं, श्रवणे सुण्डे में आजे, अवरदेवनो संग छोडी हुं, हवेतो तुम शिर लाज.....१ लक्ष चोराशी योनिमां भटक्यो, पाम्यो दुःख अपार, जन्म मरणथी हुँ गभराणो, आव्यो तुम दरबारे.....२ क्षायिक भावे ऋद्धि अनंती, तुज पासे छे स्वामी, ते आपी मुज दुःखडां कापो, अरज करूं शिरनामी.....३ निकट भविने सौ कोई तारे, एमां शुं अधिकाई, दुर भविने जो तुमे तारो, तो तुम जस जग मांहि,.....४ वीर्य उल्लासे थाये तवचेतन, आलंबन ग्रहे ताहरु, रंग विमल सूरि शुभउपयोगे, तोडे मोह अंधारु....५ (7) श्री संभवनाथ जिन स्तवन (संभव जिनवर विनती) सांभळ साहिब विनती, तुं छे चतुर सुजाण सनेही। कीधी सुजाणने विनती, प्राये चढे ते प्रमाण सनेही । १ संभव जिन अवधारीये, महेर करी महेरबान सनेही। भवभव भावठ भंजणो, भक्तवच्छल भगवान सनेही सं० २ तुं जाणे विणुं विनवे, तोहे में न रहाय सनेही, अरथी होए उतावळो, क्षण वरसमां सो थाय सनेही। सं० ३ तुं तो मोटिममा रहे, विनवीये पण विलंबाय सनेही। एक धीरो एक उतावळो, इम कीम कारज थाय सनेही । सं० ४ मन मान्यानी वातडी, सघळे दीसे नेट सनेही। एक अंतर पेसी रहे, एक न पामे भेट सनेही। सं० ५ योग्यायोग्य जे जोयवा, ते अपूरणचें काम सनेही। खाईना जलने पण करे, गंगाजळ निज नाम सनेही। सं० ६ काळ
SR No.032195
Book TitlePrachin Chaityavandan Stuti Stavan Parvtithi Dhalo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDinmanishreeji
PublisherDhanesh Pukhrajji Sakaria
Publication Year2001
Total Pages634
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size14 MB
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