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________________ 236 सुरतरु कंद हो....२ चउसय पचाश धनुष- देह, वान सोवन समान हो....(२) बहोतेर लाख पुरवतणुं आयु, पुरण पुन्य निदान हो....३ मुख शारदको चंदलो, गति जीत्यो ते गजराज हो.... मानुं चरण शरण आवि विनवे, पशु दोष हर जिनराज हो....४ मोहन मुरति ताहरी, सुखदाई नयनानंद हो, जोता तृप्ति न पामीए, जिम चतुर चकोर चंद हो....५ साचो स्वामी तुं माहरे, ताहरे दिल न होय रे, मुज सरीखो तुज लाख छ। पण मुजने गंजेना कोई हो....६ मित्र एक तुं माहरे, तुज दीठे परमाणंद हो.... मेरु विजय कविरायनो, शिष्य विनीत कहे चिरनंद हो....७ (12) श्री अजितनाथ जिन स्तवन (राग : चल उडजा पंछी) ____ अजित जिनेश्वर चरणोनी सेवा, हेवाए हुं हलीयो, कहीए अणचाख्यो पण अनुभव, रसनो टाणो मीलीयो प्रभुजी, महेर करीने आज, काज अमारां सारो, साहिब गुणनीधि गरीब निवाज, काज अमारां सारो प्र० १ मुकाव्यो पण हुं नहीं मूकुं, चुकु नवि ए टाणो, भक्तिभाव ऊठ्यो जे अंतर, ते किम रहे शरमाणो प्र० २ लोचन शांत सुधारस सुभगा, मुख मटकालु प्रसन्न, योग मुद्रानो लटको चटको, अतिशयनो अति धन्न प्र० ३ पिंड पदस्थ रूपस्थे लीनो, चरण कमळ तुज ग्रहीया, भ्रमर परे रस स्वाद चखावो, वीरसोकां करो महिया प्र० ४ बालकाळमां वार अनंती, सामग्रीए नवि जाग्यो, यौवनकाळे ते रस चाख्यो, तुं समरथ प्रभु जाग्यो प्र० ५ तुं अनुभव रस देवा समरथ, हुं पण अरथी तेहनो, चित वितने पात्र संबंधे, अजर भयो हवे केहनो प्र० ६ प्रभुनी महेरे ते रस चाखे, अंतरंग सुख पाम्यो, मानविजय वाचक एम जंपे, हुओ मुज मन कामो प्र० ७ (13) श्री अजितनाथ जिन स्तवन अजित जिणंद जुहारिये रे लो, जित शत्रु विजया जात रे सुगुणनर, नयरी अयोध्या उपनोरेलो, गजलंछन विख्यात रे.... सु० १ उचपणुं प्रभुजी तणुं रे लो, धनुष साडा सयच्चार रे.... सु० २ बहोतेर लाख पूरव धरे रे लो, आउखुं सोवन्वान रे.... सु० लाख एक प्रभुजी तणो रे लो, मुनि परिवारनुं मान रे.... सु० ३ लाख त्रण्य भली संयनी रे लो, उपर त्रीस
SR No.032195
Book TitlePrachin Chaityavandan Stuti Stavan Parvtithi Dhalo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDinmanishreeji
PublisherDhanesh Pukhrajji Sakaria
Publication Year2001
Total Pages634
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size14 MB
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