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________________ 235 प्रभु मुज जो, मारे तो आधार रे साहिब रावळो, अंतर्गतनी प्रभु आगल कहुं गुंजजो प्रीतलडी . २ साहेब ते साचो रे जगमां जाणिए, सेवकनां जे सहेजे सुधारे काज जो, एहवे रे आचरणे केम करीने रहुं, बिरुद तमारुं तारण तारण जहाज जो । प्रीतलडी. ३ तारकता तुज मांहे रे श्रवणे सांभळी, ते भणी हुं आव्यो छु दीनदयाल जो, तुज करुणानी लहेरे मुज कारज सरे, शुं घणुं कही जाण आगळ कृपाळ जो। प्रीतलडी. ४ करुणा दृष्टि कीधी रे सेवक उपरे, भव भय भावठ भांगी भक्ति प्रसंग जो, मनवांछित फलीयां रे तुज आलंबने, कर जोडीने मोहन कहे मनरंग जो । प्रीतलडी. ५ ( 10 ) श्री अजितनाथ जिन स्तवन ( राग नवपद ध२जो ध्यान) छो जग तारणहार अजितजिन छो जग तारणहार भवोदधि पार उतार अजितजिन छो जग तारणहार.... ( १ ) त्रिभुवनना आधार तुमे प्रभु मंगलना करनार, कर्मरोग काटन कारण तुमे, वैद्य तणो अवतार.... ( २ ) ज्ञानवंत जाणो सहु जगने, तो पण मुज संसार, वीतक परे जे वित्युं छे साहिब, मातापिता परेधार....(३) बालकनी लीलायुत बालक, मा आगळ करे लाड, ती हुं करूं साहिब तुज आगळ, मुज विनंती अवधार.... (४) दान न दीधुं मुनिजनने बहु शियळ न पाळ्युं लगार, तपथी तो बहु त्रास धरूं दिल, शा थाशे मुज हाल.... (५) क्रोधरूपी दावानल बलीयो, लोभ अहि विकराल, वळग्यो छे मुजने शुं करयुं, कहो प्रभु दिन दयाल,.... (६) मान महा अजगरना मुखमे, पडीयो छु निराधार, मायाजाळ थकी बंधाणो, कर्म तणे अनुसार अजित.... (७) आ भव परभव हितकारी, कांई कीधुं न काम लगार, तिण कारण सुख लेश न पाम्यो, गयो जन्म निजहार.... (८) जाण आगळ प्रभुशुं बहु कहेवुं, जल्दि करो उद्धार, अवगुण सघळां उवेखीने, द्यो ‘शिव’ लक्ष्मी दातार....(६) (11) श्री अजितनाथ जिन स्तवन (राग - ओली चंदनबाळाने) शारद सार दया करी, मात आपो अविरल वाणी हो.... (२) बीजो जिन मनमा वस्यो, गुण गाऊ गुणमणि खाणी हो....१ मनमोहन जिनजी मन वसीयो, विजया राणीनो नंद हो.... ( २ ) सोभागी महिमानीलो, मनवांछित
SR No.032195
Book TitlePrachin Chaityavandan Stuti Stavan Parvtithi Dhalo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDinmanishreeji
PublisherDhanesh Pukhrajji Sakaria
Publication Year2001
Total Pages634
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size14 MB
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