SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 281
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 232 सोभागी, देखतही रढ लागी रे; ...आज अपूर्व दशा मोहे जागी, ज्ञान टकोरी वागी रे० जि०.॥४॥ जितशत्रु...नंदन चंदन वाणी, धन्य धन्य विजया देवीराणी रे; जि० गजलंछन कंचनवर्ण काया, खिमाविजय जिन राया रे...जि०.॥५॥ (3) श्री अजितनाथ जिन स्तवन (राग : मणीयारो ते) शुभ वेला शुभ अवसरे रे, लाग्यो प्रभुशुं नेह; वाधे मुज मन वालहा रे, दिन दिन बमणो नेह; अजित जिन ! विनतडी अवधार. मन माहरूं लागी रह्यु रे, तुज चरणे अकतार०...अजित०॥१॥ हियर्थं मुज हेजालु रे, करे उमाहो अपार; घडी घडीने अंतरे रे, चाहे तुज देदार०...अजित ॥२।। मीठो अमृतनी पेरे रे, साहिब! ताहरो संग; नयणे नयण मिलावतां रे शीतल थाये अंग०...अजित०.॥३॥ अवश्य पणे ओक घडी रे, जाये तुज विण जेह; वरसा सो सम साहिबा रे, मुज मन लागे तेह...अजित०.।।४।। तुजने तो मुज उपरे रे, महेर न आवे काय; तो पण मुज मन लालचुं रे, खिण अलगु नवि थाय...अजित०.॥५॥ आसंगायत आपणो रे, जाणीने जिनराय रे ! दरिशन दिजे दिन प्रति रे, हंसरतन सुख थाय...अजित०.॥६।। (4) श्री अजितनाथ जिन स्तवन दीठो नंदन विजयानो, नहि लेखो हरख थयानो; प्रभु कीधो मन्नमयानो, बोलपालो बाह्य ग्रह्या नो॥१॥ मुजने प्रभुपद सेवानो, लाग्यो छे अविहड तानो; मुज व्हालो ते हियडानो, जे रसीयो नाथ कथानो, दीठो० ॥२॥ न गमे संग बीजानो, जो केलवे कोडी कवानो; जेणे चाख्यो स्वाद सीतानो; तेने भावे धतुरो शानो. दीठो० ॥३॥ प्रभु साथे लाड कर्यानो, माहरे आ संग सदानो; प्रभुनो गुण चित्त हर्यानो, कही मुज नहि विसर्यानी, दीठो०॥४॥ नहि छे माहरे विनव्यानो, प्रभुजीथी शुं छे छानो; शिष्य वाचक विमल विजयनो, कहे राम सुबोध विजयनो,...दीठो० ॥५॥ (5) श्री अजितनाथ जिन स्तवन अजित जिनेश्वर साहिबारे लाल, विनतडी अवधार मारा वालाजीरे, तुं
SR No.032195
Book TitlePrachin Chaityavandan Stuti Stavan Parvtithi Dhalo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDinmanishreeji
PublisherDhanesh Pukhrajji Sakaria
Publication Year2001
Total Pages634
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy