SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 280
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 231 दीठे मनडुं मोहेजी, चत्तारी अठ्ठ दश दोय प्रमाणे, जिन चोवीशे सोहेजी० (२) बत्रीशकोशनो पर्वत उंचो, आठतिहां पावडीयोजी। एकेकी चउकोश प्रमाणे, नविजाये कोई चडीयोजी० (३) गौतम स्वामी चडीया लब्धे, वांद्या जिनचोवीशजी जगचिंतामणी स्तवनमां कीधुं, पुरी मननी जगीशजी० (४) तद्भव मोक्षगामी जे मानव, ए तीरथ सेवंताजी जंधाविद्याचारण वांदे, तेतो लब्धिप्रसादेजी० (५) साठ सहससुत सगरचक्रिना, एतीरथ सेवंताजी बारमे देवलोके ते पहोंच्या, लहेशे सुख अनंताजी० (६) कंचनमय प्रासादइहा छे, वंदन करवा योग्यजी, ए अधिकार छ आवश्यकसुत्रे, जो जो देई उपयोग जी० (७) श्री आदिश्वर मुगते पहोंच्या, अविचल तीरथ एह जी, जसवंत सागर शिष्य पयंपे, जिनेन्द्र वर्धन नेह जी० (८) (1) श्री अजितनाथ जिन स्तवन जयकारी अजित जिनेश, मोहन मन महेल प्रदेश; पावन करिओ परमेश रे, साहिबजी छो रे सोभागी० ॥१॥ साहिबजी छो रे सोभागी, तुज सुरतिशुं रति जागी; मुज ओक रसे लय लागी रे,...साहिबजी०.।।२।। जिनपति! अतिशय इतमाम, देव! सेवक रहुं दरबारे; अवसर शिर कयुं न चिंता रे, ...साहिबजी०. ॥३॥ गुणवंता गर्व न कीजे, हित आणी हेत धरीजे; पोतावट पेरे पाळीजे रे,...साहिबजी०.॥४॥ तुम बेठा कृतारथ होई, सेवकनुं काम न कोई; तो पण न हुआ तुज कांई रे,...साहिबजी०.॥५।। साहिबने चाहिने जावे, सेवक जन निज शिर ठोवे; मेघनी सरसाई होवे रे, ...साहिबजी०.॥६॥ (2) श्री अजितनाथ जिन स्तवन अजित जिनेसर आंखडी प्यारी, मोहे अमर नरनारी रे; जिनवर जयकारी...करुणा शांत सुधारस कयारी, उपसम रस भरी न्यारी रे०...जि० ॥१॥ अंजन विणु मंजुलता धारी, सोहे मधुकरसे अति सारी रे; राग विना रेखांकित नीकी, अनुपम टीकी- ज्यां कीकी रे०...जिन०.॥२॥ पूर्णता मग्नता स्थिरता लीनी, पर आशाओ नही दीनी रे० निःस्पृह निरभय समता भीनी, बार पर्षदा पावन कीनी रे०...जि०.।।३।। सौम्य सुभग सुंदर
SR No.032195
Book TitlePrachin Chaityavandan Stuti Stavan Parvtithi Dhalo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDinmanishreeji
PublisherDhanesh Pukhrajji Sakaria
Publication Year2001
Total Pages634
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy