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________________ 194 (65) श्री आदिजिन स्तवन (राग : सिद्धाचलनावासी) रुडा आदिश्वर विना, मुज दिला सुना, कोण तारे, मुज पापीने कोण उगारे ॥१॥ मारुं हैयुं प्रीतिथी डोले, मुज अंतर वेदनाथी बोले, दुःखथी करुं पोकार, तेथी आव्यो तारे द्वार ॥ कोण० ॥२।। मुज अंतरमां वहेती नदीयो, मोहममताना जालनी कडीयो, सेवक पोकार तुजने । कोण० ॥३॥ मुज आंखो नयनोना तारा, मुज-दिलडामां तुमे छो सितारा, दुःख भंजन मनोहारा, साचा तुमे तारणहारा । कोण०॥४॥ क्रोद्ध कषायथी हुँ पीडायो, लोभे मुजने घणो ज सतायो, तारी ज्योति देखी, मारुं हैयु नाच्यु । कोण०॥५॥ तारा वियोगनां वादल छायो, वरस्या विना मारो वियोग आण्यो, ठाम ठेकाj, तारुं क्यां जइ पूर्छ, ॥कोण०॥६।। सूर्यने पूछं तोय जवाब न आपे, नवलाख तारलीया त्यारे ज बोले, मारा अंतरमा वसनारो, प्यारो आदिश्वर दादो ।। कोण०॥७॥ सुंदर तारु शत्रुजय धाम, प्राणसमो तुम बाल कुमार, निशदिन देशे टकोरो, मुज पापनो पतंगो ॥कोण०।८।। मुज अंतरनी आशाओ विनवे, ज्ञानविमलनी ज्योत जगावे, नेहनजरे निहालो, तारा सेवकने संभालो, कोण तारे ॥ कोण०॥६॥ (1) श्री शजय सलोको (दुहो) सरस्वति माता तुम पाये लागु; देवगुरु तणी आज्ञा रे मांगु; श्री सिद्धाचल केरो कहेशुं सलोको, नवाणुं यात्रा करो भवि लोको. ॥१॥ शत्रुजय महातममां लख्युं घj घj, अक जीभे केटकेटलुं वर्णवू, श्री धनेश्वरसूरिश्वर पासे मारी अल्प मति, मम जिह्वाग्रे वसजो माता सरस्वती, ॥२॥ प्रभुजी जावू पालीताणा शहेर के मन हरखे घणुं रे लोल, प्रभुजी आव्युं पालीताणा शहेर के तळेटी शोभती रे लोल; १ प्रभुजी सोना-रूपाना फुलडे गिरिराज वधावू रे लोल, प्रभुजी गिरिवरीओ चडंता, मन हरखे घj रे लोल १. प्रभुजी आवी धनवशी टुंक के, बाबुना दहेरे आवq रे लोल; प्रभुजी रलना भगवंत के, सहस्रकूट भगवंत नमुं रे लोल; प्रभुजी सुवर्ण मंदिरने जलमंदिर, महावीर भगवंत नमुं रे लोल, प्रभुजी मूळनायक आदिश्वर के, क्रोडो मारा वंदन होजो रे लोल. २ प्रभुजी बे बाजु बे
SR No.032195
Book TitlePrachin Chaityavandan Stuti Stavan Parvtithi Dhalo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDinmanishreeji
PublisherDhanesh Pukhrajji Sakaria
Publication Year2001
Total Pages634
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size14 MB
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