SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 240
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 191 (60) श्री सिद्धाचल स्तवन (राग : होठों से) तमे चालो सज्जन आज, जिनघर जईए रे...नीरखिने प्रभु दरबार, पावन थईए रे तमे० (१) माता मरुदेवीनो नंद, नाभिकुल चंदो रे, आगमनी रीते एह, भविक जन वंदो रे तमे० (२) द्रव्यथी विधि संयोग, आशातना टाळो रे, भावे करी एकणचित, साध्य निहाळो रे, तमे० (३) अनुभव रस भंडार, भवथी अळगो रे, अनुपम आतम भाव, एहने वळगो रे, तमे० (४) धारी एह स्वरूप, जिनपूजा कीजे रे. मारा भवभव संचित पाप, पुरवना खीजे रे, तमे० (५) एही ज छे जगसार, जिनवर वाणी रे, पामी दुर्लभ योग, त्यजे कुण प्राणी रे, तमे० (६) जिनआगम ने जिनबिंब, पंचम आरे रे, श्रद्धा ने ज्ञान सहित पलकमां तारे रे, तमे० (७) ते माटे श्री जिनराज, क्षण क्षण भजीये रे, जे विषय कषायनी टेव, अनादिनी त्यजीये रे, तमे० (८) गिरि सिद्धाचल मंडण, जिनपति राजे रे, श्री खीमाविजय जिन नाम चडत दीवाजे रे, तमे चालो सज्जन आज, जिनघर जईए रे...(६) (61) श्री सिद्धाचल स्तवन शुभ परिणाम वधारो, तुमे शत्रुजय चालो, मरुदेवानो नंद निहाळो, तुमे पातिक पंक पखाळो, निज जीवित जन्म सुधारो, तुमे गिरिवरीये चालो, (१) मानुए तिरथ समरथ जगमां, शुं करशे कलीकालो, ए पावन भविजनकुं करवा, तरवा मोह हिमाळो... तुमे० (२) दर्शन शुद्ध दर्शनकारक, जामे देव दयाळो, गिरिवर रज सविरज समवाने, मानुं पुष्कर वरसाळो...तुमे० (३) सुनंदा सुमंगला देवीनो, जगभुषण एह वहालो, संकट सघळा अरतिने, रति सवि परजाळों...तुमे० (४) अलख अगोचर चरित्र तुमारो, न लहे मूढमति वालो, मानुं ए मोह जयने कहेतो, ए रढरंग रसालो, तुमे० (५) श्री रिसहेसर तुं परमेधर, उन्नत पंक पखाळो चरण सरोज युगल प्रणमीजे, ज्ञानविमल गुण पाळो, तुमे शत्रुजय चालो....(६) ___(62) श्री सिद्धाचल स्तवन (राग : नीचे तो आवभाई) विमलाचल व्हाला वारु रे, भले भवियण भेटो भावमां, तुम सेवा ए तीरथ सारु रे, जीम न पडो भवना दावमां वि० (१) जगसघळा तीरथनो
SR No.032195
Book TitlePrachin Chaityavandan Stuti Stavan Parvtithi Dhalo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDinmanishreeji
PublisherDhanesh Pukhrajji Sakaria
Publication Year2001
Total Pages634
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy