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________________ 164 रे, भावठ न भांगे रे जगमा जे विना रे, प्रभु मारा पूरो मननां कोड, ओम कहे उदयरत्न करजोड, साहिबानी सेवा रे, भवदुःख भांगशे रे. दादाजीनी सेवारे शिवसुख आपशे रे ५. (10) श्री सिद्धाचलनुं स्तवन (राग : मारे केड कांटो वाग्यो.) ओ देव मे भेटयां चरणतमास, तुमे टाळोने दुःखडां हमारां, श्री आदिश्वर प्रथम जिणंद, माता मरूदेवीनां नंदा, मुखडु तुमारं पुनमचंदा, तुम दीठे परमानंदा नाभिराया० १. अटुलाने पण आदर कीजे, मारी विनंती चित्तमा धरीजे, प्रभुजी नितनित ओलंभो दीजे, तो प्रभुनां दीलडां रीझे. २. आठ कर्मने दूर निवारो, मारा जन्ममरणना फेरा टाळो, प्रभु भवसागरथी पार उतारो, बाह्य झालीने पार उतारो. ३. केशर चंदन भर्या कचोळा, हुं तो पूजा करुं रंगरोलां, पूजा करीने मारुं दिलरीझे, भला चंपानां ओसडां कीजे. ४. तुमे शेजेजा गढनां वासी, तुमारी सेवा हुं पुन्ये पामी, प्रभु तुमे छो मुज अंतरजामी, अम हर्ष कहे शिरनामी. ५. (11) श्री सिद्धाचलनुं स्तवन शोभा शी कहुं रे शेजूंजा तणी, जिहां बिराजे प्रथम तीर्थंकर देव जो, रूडी रे रायणतळे ऋषभ समोसर्या, चोसठ सुरपति सारे प्रभुनी सेव जो. १. निरख्यो रे नाभिराया केरा पुत्रने, माता मरूदेवी केरा नंदजो, रूडी रे विनीता नगरीनो धणी, मुखडु सोहे शरदपुनमनो चंद्रजो. २. नीरखो रे नारी कंतने विनवे, पिउडा मुजने पालिताणा देखाडजो, ओ गिरिजे पूर्व नवाणुं समोसर्या, माटे मुजने आदिश्वर भेटाडजो, ३. मारे मन जावानी घणी होश छे, कयारे जाउंने कयारे करुं दर्शन जो, ते माटे मन मारूं तलसे घj, नयणे निहालूं तो ठरे मारा लोचन जो. ४. ओवी ते अरज अबळानी सांभळो, हुकम करो तो आq तमारी पास जो, महेर करीने दादा दर्शन दीजीये, श्री शुभवीर नी पहोंचे मननी आश जो, ५.. (12) श्री सिद्धाचलनुं स्तवन सांभळो आदि जिणंद सोभागी, तुम चरणोनी लगनी लागी, श्यां कहुं
SR No.032195
Book TitlePrachin Chaityavandan Stuti Stavan Parvtithi Dhalo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDinmanishreeji
PublisherDhanesh Pukhrajji Sakaria
Publication Year2001
Total Pages634
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size14 MB
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