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________________ 163 ___(8) श्री सिद्धाचल स्तवन चालो चालो विमलगिरी जईओ रे, भवजल तरवाने, तुमे जयणा ओ धरजो पाय रे, पार उतारवाने (ओ आंकणी) बाळ काळनी चेष्टा टाळी, हां रे हुं तो धर्मयौवन हवे पायो रे, भव० भूल अनादिनी दूर निवारी, हारे हुं तो अनुभवमां लय लायो रे, पार०१ भवतृष्णा सवि दूर करीने, हां रे मारी जिन चरणे लय लागी रे. भव० संवर भावमां दिल हवे ठरीउं, हां रे मारी जिन चरणे लय लागी रे, पार० सचित्त सर्वनो त्याग करीने, हां रे नित्य ओकासणा तपकारी रे, भव० पडिक्कमणां दोय विधि शुं करशुं, हां रे भली अमृत क्रिया दिल धारी रे, पार०३ व्रत उच्चरशुं गुरुनी साखे, हां रे हुं तो यथाशक्ति अनुसार रे, भव० गुरु संघाते चडशुं गिरिपाजे, हां रे हुं तो सूरजकुंडमां नाही रे, भव० अष्टप्रकारी श्री आदिजिणंदनी, हां रे हुं तो पूजा करीश लय लाई रे, पार०५ तीरथपतिने तीरथ सेवा, हां रे ओ तो मीठा मोक्षना मेवा रे, भव० सात छट्ठ दोय अट्ठम करीने, हां रे मने स्वामी वात्सल्यनी हेवा रे, पार०६ प्रभुपदपद्म रायणतळे पूजी, हारे हुं तो पामीश हरख अपार रे, भव० रूपविजय प्रभु ध्यान पसाये, हां रे हुं तो पामीश सुख श्री कार रे; पार० चालो चालो विमलगिरि जईओ रे, भवजल तरवाने; तुम जयणाओ धरजो पाय रे, पार उतरवाने ०७. (9) श्री सिद्धाचलनुं स्तवन शेर्बुजा गढना वासी रे मुजरो मानजो रे, सेवकनी सुणी वातो रे दिलमां धारजो रे, प्रभु में दीठो तुम देदार, आज मुने उपन्यो हरख अपार, साहिबानी सेवा रे भवदुःख भांजशे रे, दादाजीनी सेवारे शीवसुख आपशे रे ओक अरज अमारी रे दिलमां धारजो रे, १. चोराशी लाख फेरा रे, दूर निवारजो रे, प्रभु मने दुर्गति पडतो राख, दरिशन वहेलेरु रे दाख. २. दोलत सवाई रे सोरठ देशनी रे, बलहारी जाउ रे प्रभु तारा वेषनी रे, प्रभु तारुं रुईं दीर्छ रूप, मोह्या सुर नर वृंदने भूप० ३. तीरथ को नही रे शेजा सारीखं रे, प्रवचन पेखीने में कीधुं तारू पारखं रे, ऋषभने जोई जोई हरखे जेह, त्रिभुवन लीला पामे तेह, भवोभव मांगु रे प्रभु तारी सेवना
SR No.032195
Book TitlePrachin Chaityavandan Stuti Stavan Parvtithi Dhalo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDinmanishreeji
PublisherDhanesh Pukhrajji Sakaria
Publication Year2001
Total Pages634
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size14 MB
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