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________________ 149 होडीजी, चैत्यवंदन परिपाटीजी त्यांथी, जयतलेटी ते सोहेजी, दर्शन वंदन स्पर्शन करतां, भवियणनां मन मोहेजी ॥३॥ मन हरण करनारी प्रभु जे, मूर्ति देखे ताहरी, संसारताप मीटावनारी, मूर्ति वंदे ताहरी, चारित्र लक्ष्मी आपनारी, मूर्ति पूजे ताहरी, त्रण जगतमा छे धन्य तेहने, वंदना प्रभू माहरी ॥४॥ आंखडी ताहरा दर्शन करती, चितडुं तो चगडोल फरे, ए रीते तुज ध्यान धरंता, कर्मो मारा क्यांथी खरे, शिवनगरमां जावं छे मारे, बेठो ह दुर्गति नाथ रे, करुणासिंधु करुणा करीने, नैया पार लगाव रे ॥५।। भवमां भम्यो भवमां भूल्यो, मुजमां रहेला दोषथी, जीवोनी साथे वैरभाव, मैं राखीयो बहु रोषथी, मुज जीवननी ए काळी कथनी, स्पष्ट तुजने हुं कहुँ, ए दोषमांथी मुक्त कर, सन्मैत्री भावे हुं रहुँ ॥६॥ आंखडी देखी अमृत झरती, हैयु माझं हर्ष धरे, मुंखडं देखी मलकतुं ताहरूं, थनगन मनडुं नाच करे, मूरती ताहरी नजरे निहालुं, वीतरागतां मनमां करे, दर्शन वंदन स्तवना करतां, भवभव संचित दूर रहे ||७|| कर्मनो क्षय करवो मारे, दुःखनो क्षय पण करवो, समाधि मृत्यु मांगु जिनवर, भवोदधिने तरवो, योग्य नथी हुं करूं याचना, तो पण रोष न धरवो, कोनी पासे जईने हुं मांगु, बोधी लाभने वरवो ।।८।। हुं रागथी रंगेल छु ने द्वेषथी उभराऊं छु, मोह केरां पासमां हुं पापथी पीडाऊं छु, करणी करी में पापनी, पण प्रभु हवे पस्ताऊं छु, शरणुं स्वीकार्यु ताहरूं, हे नाथ तुज गुण गाऊ छु ॥६॥ संगम तणां उपसर्ग सुणतां, भव्यना हैया सूना, तस कर्मनो विपाक देखी, वीरने आंसु ऊना, करुणा निधान वीरने नित नमुं, जे करे मुज अघहरं, वंदन करुं धरी भाव दीलमां, वर्धमान जिनेश्वरम् ॥१०॥ दश भवतणो वैरी करे, कमठ अति संतापने, धरणेन्द्र भक्तिभाव करतो, टालतो संतापने, रागी द्वेषी बेह नीरखे, सम नजर परमेश्वरम्, वंदन करुं धरी भाव दिलमां, पार्श्वनाथ जिनेश्वरम् ॥११॥ गणि गौतम गुण गाता, तीर्थ भरुअच्छ रंजनम्, सुव्रत जिन- तीर्थ मोटुं, भविक दुःख सवि भंजनम्, तुज आण जीव जे आचरे, तस कर्म ह्रासकरं वरम्, वंदन करुं धरी भाव दीलमां, मुनिसुव्रत जिनेश्वरम् ॥१२॥ निज-परतणां जे आत्महितनी, भावनामां नित रहे, सहाय करतां साधुजी, इम आप आगल जिन कहे, अढीद्विपना सवि नित प्रशंसु, साधुवेश मूदा धरं, साधु गुण अनुमोदतो, हुं वंदतो सीमंधरम् ॥१३॥ कषायना
SR No.032195
Book TitlePrachin Chaityavandan Stuti Stavan Parvtithi Dhalo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDinmanishreeji
PublisherDhanesh Pukhrajji Sakaria
Publication Year2001
Total Pages634
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size14 MB
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