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________________ 148 (181) श्री मंगलाचरण श्री गौतमस्वामीजी का प्रभातीयां श्री गौतम गुरू समरीये, उठी उगमते सुर । लब्धि शीलो गुण नीलो, देखो सुख भरपुर ॥१॥ गौतम गोत्र तणो धणी, रूपे अतीव भंडार । अट्ठावीश लब्धी धणी, श्री गौतम गणधार ॥ श्री० ॥२॥ अमृतमय अंगुठडो, ठवीयो पात्र मोझार। खीर खांड धृत पुरीयो, मुनिवर दोढ हजार ।। श्री० ॥३॥ पहेलो मंगल श्री वीरनो, बीजो गौतमस्वाम। त्रीजो मंगल स्थूली भद्रनो, चोथो धर्मनो ध्यान ॥ श्री० ॥४॥ प्रह उठी प्रणमुं सदा, जीहां जिनवर भाण। मानविजय उवजायनो, होजो कुशल कल्याण । होजो मंगलिक माल ॥ श्री० ॥५॥ (182) श्री सरस्वती मातानी स्तुति जय जय सरस्वती माता, जय जय सरस्वती माता। सद् बुद्धि की दाता, तुं ही हे माता ॥जय०||१|| ज्ञानकी देवी ज्ञान हमे दो, करना सुज्ञानी। जडतां हम जीवनकी, दूरकरो माता, |जय०॥२॥ हम हैं बालक माता तेरे, हरना हम अज्ञान, हो माता हरना हम अज्ञान, ज्ञान का दीप जलाकर, प्रकाश द्यो माता,||जय०||३॥ हो जाये जो कृपा तुमारी, गुंगा बने वाचाल, हो माता गुंगा बने वाचाल, मीट जाता मूरख पण, पंडित बन जाता, हो माता पंडित बन जाता, हो माता पंडित बन जाता ॥जय०॥४॥ धर्मकीर्ति जगमें फेलाये, ऐसा द्यो वरदान । हो माता ऐसा द्यो वरदान, शासन शान बढाये। आशिष द्यो माता ॥जय०॥५॥ (183) प्रभुजी के सामने बोलने की स्तुतियां पूर्णानन्दमयं, महोदयमयं, कैवल्यचिद्विद्मयं रुपातीतमयं, स्वरूपरमणं, स्वाभाविकी श्रीमयं, ज्ञानोद्योतमयं, कृपारसमयं, स्वाद्वाद-विद्यालयं, श्री सिद्धाचलतीर्थराजमनिशं वन्देह-मादीश्वरम् ॥१॥ देश विदेश भवभव भटके, गिरिवर दरिसण नवी पावे, अनंत सिद्धनो ठाम गिरिवर, जोवा मन बहु ललचावे, धन्य मुनिवर धन्य श्रावकगण, श्री सिद्धाचल नित देखे, भक्ति करे गिरिवरनी भावे, जन्मारो तेहनो लेखे ॥२॥ जिनवर मुनिवर नरवरनी, ज्यां आवे कोडाकोडीजी, जय तलेटी उभा वांदे, हरखे होडा
SR No.032195
Book TitlePrachin Chaityavandan Stuti Stavan Parvtithi Dhalo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDinmanishreeji
PublisherDhanesh Pukhrajji Sakaria
Publication Year2001
Total Pages634
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size14 MB
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