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________________ भावे आराधोजी. ३ विमल कमल दल, निर्मल लोयणा, उल्लसित उरे ललीतांगीजी, ब्रह्माणी, देवी निरवाणी, विघ्न हरण कणयंगीजी; मुनिवर मेध, रत्नपद अनुचर, अमर रन अनुभावेजी, निर्वाणी देवी प्रभावे, उदय सदा सुध पावेजी. ४ (78) श्री शान्तिनाथ जिन स्तुति गजपुर अवतारा, विश्वसेन कुमारा, अवनितले उदारा, चक्कवि लच्छि धारा; प्रति दिवस सवारा, सेविये शांति सारा, भवजलधि अपारा, पामीये जेम पारा. १ जिनगुण जस मल्ली, वासना विश्व वल्ली, मन सदन च सल्लि, मानवंति निसल्लि; सकल कुशल वल्लि, फुलडे मेघ फुली, दूर्गति तस डूली, ता सदा श्री बहुली. २ जिनकथित विशाला, सूत्र श्रेणी रसाला, सकल सुख सुखाला, मेलवा मुक्तिमाला; प्रवचन पद माला, दूतिका ओ दयाला, उरधरी सुकुमाला, मूकिये मोहजाला. ३ अति चपल वखाणी, सूत्रमा जे प्रमाणी, भगवति ब्रह्माणी, विघ्नहंती निर्वाणी; जिनपद लपटाणी, कोडी कल्याण खाणी, उदयरले जाणी, सुखदाता सयाणी. ४ (79) श्री शान्तिनाथ जिन स्तुति शांति सुहंकर साहिबो, संयम अवधारे, सुमतिने घेर पारj, भवपार उतारे; विचरंता अवनीतले, तप उग्रविहारे, ज्ञान ध्यान ओक तानथी, तिर्यंचने तारे. १ पास वीर वासुपूज्यजी, नेम मल्लि कुमारी, राज्य विहूणा से थया, आपे व्रत धारी; शांतिनाथ प्रमुखा सवि, लही राज्य निवारी, मल्लि नेम परण्या नहीं, बीजा घरबारी २ कनक कमल पगलां ठवे, जग शांति करीजे, रयण सिंहासन बेसीने, भली देशना दीजे; योगावंचक प्राणीया, फल लेता रीझे, पुष्करावर्तना मेधमां, मगसेल न भीजे. ३ क्रोडवदन शुकरारुढो, श्याम रुपे चार, हाथ बीजोरु कमल छे, दक्षिण कर सार; जक्ष गरुड वाम पाणीओ, नकुलाक्ष वखाणे, निर्वाणीनी वात तो, कवि वीर ते जाणे. ४ ___(80) श्री मल्लिनाथ जिन स्तुति मल्लिजिनेसर वाने नीला, दीयो मुज समकित लीलाजी, अण परणे जिणे
SR No.032195
Book TitlePrachin Chaityavandan Stuti Stavan Parvtithi Dhalo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDinmanishreeji
PublisherDhanesh Pukhrajji Sakaria
Publication Year2001
Total Pages634
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size14 MB
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