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________________ 97 गंध घोली, भरी पुष्कर नोली, टालीये दुःख होली, सवि जिनवर टोली, पूजीओ भाव भोली, शुभ अंग अग्यार, तेम उपांग बार, वळी मूल सूत्र चार, नंदी अनुयोद द्वार; दशपयन्ना उदार, छेद षट् वृति सार, प्रवचन विस्तार, भाष्य नियुक्ति सार, जय जय जय नंदा, जैन दृष्टि सुरिंदा, करे परमानंदा, टालता दुःख दंदा; ज्ञानविमल सूरिंदा, साम्यमां कंद कंदा, वर विमलगिरिंदा, ध्यानथी नित्य भद्दा. (76) श्री शान्तिनाथ जिन स्तुति ('शांन्ति सुहंकर साहिबो' देशी) शान्ति जिनेसर समरीओ, जेनी अचिरा माय, विश्वसेन कुल उपन्यां, मृग लंछन पाय; गजपुर नयरीनो धणी, कंचनवर्णी छे काय, धनुष चालीश देहडी, लाख वरस- आय. १ शान्ति जिनेशर सोलमा, चक्री पंचम जाणुं, कुंथुनाथ चक्री छठ्ठा, अरनाथ वखाणु; त्रणे चक्री सहि, देखी आणंदु, संजम लेइ मुगते गया, नित्य उठीने वंदु. २ शान्ति जिनेसर केवली, बेठा धर्म प्रकाशे, दान शियल तप भावना, नर सोहे अभ्यासे, अरे वचन जिनजी तणा, जेणे हियडे धरीया, सुणतां समकित निर्मला, तेणे केवल वरीया. ३ समेतशिखर गिरि उपरे, जेणे अणसण कीधां, काउसग्ग ध्यान मुद्रा रहि, जेणे मोक्षज सिध्यां; जक्ष गरुड समरु सदा, देवी निर्वाणी, भविक जीव तुमे सांभळो, रिखवदासनी वाणी. ४ (77) श्री शान्तिनाथ जिन स्तुति सकल सुखाकर प्रणमीत नागर, सागरपरें गंभीरोजी, सुकृत लतावन, सींचन घनसम, भविजन मन तरु कीरोजी; सुरनर किन्नर असुर विद्याधर, वंदित पद अरविंदाजी, शिव सुख कारण, शुभ परिणामे, सेवो शांति जिणंदाजी. १ सयल जिनेसर भुवन दिणेसर, अलवेसर अरिहंताजी, भविजन कुमुद, संबोधन शशिसम, भयभंजन भगवंताजी; अष्ट करम अरि दल अति गंजन, रंजन मुनिजन चित्तजी, मन शुद्धे जे, जिनने आराधे, तेहने शिवसुख दित्तजी, २ सुविहित मुनिजन, मानसरोवर, सेवित राज मरालोजी, कलिमल सकल, निवारण जलधर, निर्मल सूत्र स्सालोजी; आगम अकल, सुपद पदे शोभित, उंडा अर्थ अगाधोजी, प्रवचन वचना, तणी जे रचना, भवीजन
SR No.032195
Book TitlePrachin Chaityavandan Stuti Stavan Parvtithi Dhalo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDinmanishreeji
PublisherDhanesh Pukhrajji Sakaria
Publication Year2001
Total Pages634
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size14 MB
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