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प्रथयतु मृग लक्ष्मा, शान्तिनाथो जनानां, प्रसृत भुवनकीर्तिः कामितं कमेकान्ति; १ जिनपतिसमुदायो, दायकोङभीप्सिताना, दुरिततीमिरभानुः कल्पवृक्षोपमानः, रचयतु शिवशान्ति, प्रातिहार्यं श्रियं यो, विकटविषमभूमी, जातदंतिं बिभर्ति. २ प्रथयतु भविकानां, ज्ञानसम्पत्समूह, समय इह जगत्या, माप्तवक्त्रप्रसूतः, भवजलनिधिपोतः सर्वसम्पत्तिहेतुः, प्रथितधनघटायां, सूर्यकान्तप्रकाशः. ३ जयविजयमनिषा,मन्दिरंः, ब्रह्मशान्तिः सूरगिरिसमधिर, पूजितोन्यक्षयक्षैः हरतु सकलविघ्नं, योजने चिन्त्यमानः स भवतु सततं वः, श्रेयसे शान्तिनाथः, ४
(69) श्री शान्तिनाथ जिन स्तुति चैत्रवदि आठम दिने ओ, जन्म्या आदिजिनराज तो, पांचसे धनुषनुं देहमान अ, कंचनवरणी काय तो; लाख चोराशी पूर्व- अ, आयु भोगवी विशाल तो, अष्ट कर्म शत्रु हणी ओ, वेगे शिवपुर जाय तो. १ भरते भराव्यां देहरा ओ, थाप्यां जिन चोवीश तो, तनुमान आप आपणुं ओ, तेहने नामुं शीशी तो; समनासिका थापीया ओ, मणिमय प्रतिमा कीध तो, अष्ट द्रव्यशुं पूजतां अ, मनवांछित फल लीध तो. २ ऋषभदेव ज्ञानी हुआ ओ, भाखे शुद्ध उपदेश तो, दुविध धरम प्रकाशीयो ओ, श्रावक-साधु निवेश तो; षद्रव्य तिहां भाखीया ओ, पांच छंडी ओक धार तो, ने निखेवा संजुत लहो अ, अम अनेक विचार तो. ३ महावद तेरशे शिव लहुं ओ, अष्टापदगिरि आय तो, गोमुखजक्ष चक्केसरी ओ, करे शासननी सहाय तो; ओवा जिनवर सेवतां ओ, पातक सरवे जाय तो, मुनि हुकम तस ध्यानथी ओ, मनवांछित तस थाय तो. ४
(70) श्री शान्तिनाथ जिन स्तुति वंदो जिन शांति, जास सोवन कांति, टाळे भवभ्रांति, मोह मिथ्यात्व शांति; द्रव्य-भाव अरि पांति, तास करता निकांति, धरता मन खांति, शोक-संताप-वांति. १ दोय जिनवर नीला, दोय धोळा सुशीला, दोय रक्त रंगीलां, काढतां कर्म कीला; न करे कोइ हीला, दोय श्याम सलीला, सोळ स्वामीजी पीला, आपजो मोक्षलीला. २ ज़िनवरनी वाणी, मोह-वल्ली कृपाणी, सूत्रे देवाणी, साधुने योग्य जाणी; अरथे गुंथाणी, देव मनुष्य