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________________ 69 प्रकाशे, समवसरण मंडाणजी, निश्चयने व्यवहार बेहंशु, आगम मधुरि वाणीजी. नरक तिर्यंच गति दोयने होवे, बीज ते जे आराधे जी. दुविध दयात्रस स्थावर केरी, करतां शिवसुख साधेजी...३. बीज वदन पर भुषण भुषित, दीपे ललवटी चंदाजी. गरूडजक्ष नारी सुखकारी, निर्वाणी सुखकंदाजी, बीज तणो तप करतां भविने, समकित सानिध्य कारीजी धीर विमळ शिष्य कहे इण विध शिख, संघना विघन निवारीजी....४. (13) बीजनी स्तुति पूर्वदिशि उत्तरदिशि वचमां, इशानखूणे अभिरामजी, पुक्खलवइ विजये पुंडरिकगिरि, नगरी उत्तम ठामजी; श्रीसीमंधर जिनसंप्रति केवळी; विचरंता जगजयकारजी, बीज तणे दिन चंद्रने विनवू, वंदना कहेजो अमारीजी. १ जंबूद्वीपमां चार जिनेवर; धातकी खंडे आठजी, पुष्कर अरधे आठ मनोहर, अहवो सिद्धांते पाठजी; पंच महाविदेहे थईने, विहरमान जिन वीशजी, जे आराधे बीज तप साधे, तस मन हुइ जगीशजी. २ समवसरणे बेसीने वखाणी, सुणी इन्द्र इन्द्राणीजी, श्री सीमंधरजिन प्रमुखनी वाणी, मुज मन श्रवणे सुहाणीजी; जे नरनारी समकितधारी, ओ वाणी चित्त धरशेजी; बीजतणो महिमा सांभळतां, केवल कमला वरशेजी. ३ विहरमान जिन सेवाकारी, शासनदेवी सारीजी; सकल संघने आनंदकारी, वांछित फल दातारीजी; बीज तणो तप जे नर करशे, तेहनी तुं रखवालीजी, वीरसागर कहे सरस्वती माता, दीओ मुज वाणी रसालीजी. ४ (14) बीजनी स्तुति दिन सकल मनोहर, बीज दिवस सुविशेष, राय राणा प्रणमे, चंद्रतणी जिहां रेख; तिहां चंद्रविमाने, शाश्वता जिनवर जेह, हुं बीज-तणे दिन, प्रणमुं आणी नेह. १ अभिनंदन चंदन, शीतळ शीतळनाथ, अरनाथ सुमति जिन, वासुपूज्य शिव साथ; इत्यादिक जिनवर, जन्म ज्ञान निरवाण, हुं बीज तणे दिन, प्रणमु ते सुविहाण. २ प्रकाश्यो बीजे, दुविध धर्म भगवंत, जेम विमळ कमळ दोय, विपुल नयन विकसंत, आगम अति अनुपम, जिहां निश्चय व्यवहार, बीजे सवि कीजे, पातकनो परिहार. ३ गजगामिनी कामिनी, कमळ
SR No.032195
Book TitlePrachin Chaityavandan Stuti Stavan Parvtithi Dhalo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDinmanishreeji
PublisherDhanesh Pukhrajji Sakaria
Publication Year2001
Total Pages634
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size14 MB
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