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________________ मृत्यु और परलोक यात्रा वह ब्रह्म शरीर को उपलब्ध होता है। यह भी मोक्ष ही है किन्तु इसमें ईश्वर व जीवात्मा का भेद बना रहता है। इसका भी पुनर्जन्म नहीं होता। ____ अहंकार समाप्त होने पर ही उसका ब्रह्म में लय हो जाता है। उसकी अस्मिता ही समाप्त हो जाती है। इसी को “लय मुक्ति" कहते हैं। इस मनस तल तक स्त्री पुरुष का भेद बना रहता है। इसके पार "आत्म शरीर” को उपलब्ध होने पर फिर कोई भेद नहीं रहता क्योंकि आत्मा का कोई लिंग नहीं होता । (क) आत्मिक शरीर यह आत्म शरीर कुण्डलिनी के “विशुद्ध चक्र" से सम्बन्धित है जिसके जाग्रत होने पर ही इसका अनुभव होता है। मनस शरीर से अपेक्षाएँ न रहने पर इसमें प्रवेश हो जाता है । इसका उपलब्ध होना सर्वाधिक महत्व का है । यहाँ स्त्री पुरुष का भेद समाप्त हो जाता है। यह मनस तल तक ही रहता है। आत्मा का कोई लिंग नहीं होता। यह जीवात्मा का अपना शरीर है। इस पर रुकने वाले को परमात्मा का अनुभव नहीं होता। जीवात्माएँ अनेक होने से वे अनेक आत्माएँ मानेंगे। यह शद्ध आत्मा का नहीं, जीवात्मा का ही अनुभव है। इसमें भी मोक्ष का अनुभव होता है। यह स्थिति तृप्ति व आनन्द की है। इसलिए इसके आगे यात्रा को इच्छा नहीं होती। यहाँ आनन्द अपनी चरम ऊँचाई पर होता है किन्तु आगे की यात्रा के लिए इसकी भी उपेक्षा
SR No.032177
Book TitleMrutyu Aur Parlok Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNandlal Dashora
PublisherRandhir Book Sales
Publication Year1992
Total Pages138
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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