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________________ ३८ ] मृत्यु और परलोक यात्रा सामान्य क्रम में हर व्यक्ति में दोनों ही लिंगों सम्बन्धी कुछ प्रवृत्तियाँ विद्यमान रहती हैं किन्तु प्रधानता किसी एक की ही होती है । विज्ञान का प्रत्येक विद्यार्थी जानता है कि प्रत्येक मनुष्य के भीतर उभय लिंगों का अस्तित्व होता है । नारी के भीतर नर सत्ता भी होती है जिसे "एनीमस" कहते हैं । इसी प्रकार नर के भीतर नारी की सूक्ष्म सत्ता भी रहती है जिसे "एनिमा " कहते हैं । प्रजनन अंगों के गार में विपरीत. लिंग का अस्तित्व भी होता है। किसी-किसी में विपरीत लिंगी व्यक्तित्वं प्रबल हो उठता है । ऐसी स्थिति में शल्यक्रिया द्वारा परिवर्तित लिंग वाला व्यक्तित्व उभर आता है । जिस व्यक्ति में नारी प्रवृत्तियों की प्रधानता होती है वह अगले जन्म में नारी बन जाता है तथा जिस नारी में पुरुष प्रधान प्रवृत्ति होती है वह अगले जन्म में लड़का बन जाता है । यह परिवर्तन मनोवृत्ति के परिवर्तन के परिणाम हैं । निम्न उदाहरणों से इसकी पुष्टि होती है । (१) ब्राजील निवासी श्रीमती इडालारेन्स बारह बार बच्चों की माँ बन चुकी थी । उसकी सन्तान प्रजनन की सम्भावना क्षीण हो चुकी थी किन्तु उसकी लड़की इमीलिया को लड़की होने से घोर ग्लानि थी । उसने कहा मैं पुनः तुम्हारे गर्भ से पुत्र रूप में जन्म लेना चाहती हूं। उसने बीस वर्ष की उम्र में जहर खा लिया । कुछ ही दिनों बाद वह उसी माँ से पुनः पुत्र रूप में उत्पन्न हुई । मां-बाप ने उसका नाम 'पोलो' रखा । उसकी प्रवृत्तियाँ इमीलिया जैसी ही थीं । ( २ ) श्रीलंका की एक-दो वर्षीय लड़की ने बताया कि पूर्व जन्म में वह लड़का थी । परामनोवैज्ञानिकों ने खोज की तो पाया कि उसका दिया गया विवरण प्रामाणिक था । अपने पूर्व
SR No.032177
Book TitleMrutyu Aur Parlok Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNandlal Dashora
PublisherRandhir Book Sales
Publication Year1992
Total Pages138
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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