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________________ ३६] मृत्यु और परलोक यात्रा नहीं होता इसलिए जीवात्मा को इनके फल भोग के लिए निरन्तर जन्म धारण करते रहना पड़ेगा। मुक्तावस्था तक यही स्थिति रहती है। (य) जीवात्मा और मन ___ जीवात्मा कभी मन से रहित नहीं होती। मन से रहित होना ही जीवात्मा का मोक्ष कहा जाता है । जीवात्मा कर्ता है व इन्द्रियाँ उसके उपकरण हैं जिससे वह कार्य करती है। शुद्ध आत्मा के साथ जब प्रकृति के तीन गुणों (सत्व, रज, तम) का संयोग होता है तो "चित्त" का आविर्भाव होता है । समष्टि में इसी को “महत्तत्व' कहा जाता है। इसी चित्त से बुद्धि उत्पन्न होती है । क्या ग्रहण करना है, क्या त्यागना है, क्या अच्छा है क्या बुरा है, यह निर्णय करना बुद्धि का कार्य है। इसी बुद्धि से “अहंकार' उत्पन्न होता है। अपनी सत्ता के बोध को ही अहंकार कहते हैं। ___ अहंकार से पांच तन्मात्राएँ उत्पन्न होती हैं तथा इसी से "मन" और इन्द्रियों का विकास होता है। चिन्तन, विचार, इन्द्रियों को प्रेरित करना, तर्क आदि मन के कार्य हैं। इन तन्मात्राओं से पाँच महाभूत उत्पन्न होते हैं। इस प्रकार पाँच ज्ञानेन्द्रियों, पाँच कर्मेन्द्रियों, इन्द्रियों के पाँच विषय तथा मन, इन सोलह विकारों से युक्त जीवात्मा का स्वरूप है। यह जीवात्मा ही मन को प्रेरित करता है। जीवन जीवात्मा का. - गुण है । मन भी जड़ है जो जीवात्मा की शक्ति से कार्य करता है। मन और आत्मा का सम्बन्ध मोक्ष पर्यन्त रहता है।
SR No.032177
Book TitleMrutyu Aur Parlok Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNandlal Dashora
PublisherRandhir Book Sales
Publication Year1992
Total Pages138
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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