SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 16
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सृष्टि रचना [ १५ का एक ही नियम है। दिव्य दृष्टि से महात्मागण इस सम्पूर्ण सृष्टि का पूरा विकास क्रम सिनेमा की फिल्म की भाँति शिष्य को दिखा देते हैं । सृष्टि की रचना का महान कार्य पूरा करने के लिए ब्रह्मा ने तप किया जिससे दो प्रकार की शक्तियों का आविर्भाव हुआ । एक थी "ज्ञान शक्ति" तथा दूसरी "विज्ञान" अथवा " क्रिया शक्ति" । इन्हीं का नाम " गायत्री" और "सावित्री" रखा गया । गायत्री चेतना शक्ति का नाम है तथा सावित्री प्रकृति का नाम है । इन्हीं को सांख्य ने "पुरुष" और "प्रकृति" कहा है । ये ही इसकी "परा" एवं "अपरा" प्रकृतियाँ हैं जिन्हें चेतन और जड़ प्रकृतियाँ कहा जाता है। जड़ प्रकृति से पदार्थों का निर्माण होता है तथा चेतना शक्ति से उनमें प्राणों का संचार होता है जिससे वह जी उठता है, गतिमान हो जाता है। यह सारी सृष्टि इन दोनों के संयोग का परिणाम है । अन्य जीवों में साधारण चेतना होती है जबकि मनुष्य में पाँचों प्राणों से मिली आत्म चेतना भी होती है । अन्य प्राणी प्रकृति (स्वभाव) से ही अपना जीवन यापन करते हैं किन्तु मनुष्य में अच्छे-बुरे, उचित, अनुचित का निर्णय करने के लिए विशिष्ट ज्ञान भी होता है जिससे वह पशुओं से थोड़ा ऊँचा स्थान रखता है । इस विशिष्ट ज्ञान के आधार पर वह ईश्वरीय प्रभुता को भी जान सकता है व प्राप्त कर सकता है जो उसके भीतर निहित है।
SR No.032177
Book TitleMrutyu Aur Parlok Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNandlal Dashora
PublisherRandhir Book Sales
Publication Year1992
Total Pages138
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy