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________________ है जब परलोक गमन करता, आत्मा सदूकृत उपभोग अर्थ । तब प्रपंच क्यों पञ्चभूत के, हो सकें रोकने को समर्थ ॥११॥ अर्थ - जिस कालमें यह आत्मा अपने कियेको भोगनेकी इच्छा कर परलोकको जाय है, तब यह पंचभूत सम्बन्धी देहादिक प्रपंच क्योंकर रोकने में समर्थ हैं ॥ भावार्थ- - इस जीवका वर्तमान आयु पूर्ण होजाय अर जो अन्य लोक सम्बन्धी आयुका यदि उदय आ जाय तब परलोकको गमन करनेको शरीरादि पंचभूत कोऊ रोकनेमें समर्थ नहीं है । तातें बहुत उत्साह सहित चार आराधनाका शरण ग्रहणकर मरण करना श्रेष्ठ है || मृत्युकाले सतां दुःखं यद्भवेत व्याधिसंभवं । देह मोह विनाशाय मन्ये शिवसुखाय च ॥ १२ ॥ 12. Due to old karma, pain and disease At the time of death appear, To wise men they are for release From allurements, for Moksa's pleasure ! मृत्युकाल जो दुःख व्याधियां, होतीं कृत कर्मानुकूल हैं । ने सुजनों को देह-मोह-हत हित औ' चिर शिव सौख्य-मूल हैं ||१२|| C अर्थ - मुत्युका अवसर विषे जो पूर्व कर्मके उदयसे रोगादि व्याधिकर दु:ख उत्पन्न होय है सों सत्पुरत्रोंके शरीर से मोहके नाशके प्रथि है अर निर्वाणके सुखके लिये हैं | ( १३ )
SR No.032175
Book TitleMrutyu Mahotsav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSadasukh Das, Virendra Prasad Jain
PublisherAkhil Vishva Jain Mission
Publication Year1958
Total Pages48
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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