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________________ १३४ हे चंद्र के समान आह्लादक, चन्द्ररूप, चन्द्र जैसे वर्णवाली, चन्द्रसदृश लेश्यावाली, चन्द्र के समान उत्तम, चन्द्र के मुकुटवाली ! जैसे चन्द्रमा अपनी शीतल किरणोंसे संताप को दूर करता है उसी प्रकार आप मेरे और मेरे परिवार के दुःख, दारिद्र्य और सन्ताप को दूर करो । हे यन्त्रवाली ! हे यन्त्ररूप ! हे मंत्र। वाली ! हे मंत्ररूप ! हे तंत्रवाली ! हे तंत्ररूप ! सभी मेरे वश करो । हे हर्षवाली ! हे हर्षरूप ! मेरे शरीर में, मेरे घर में, मेरे कुटुम्बमें अचिन्तित सुख दो, और मेरे चिन्तित सभी सुख मुझे दो । ॐ ह्रीँ श्रीँ क्लीँ एँ हीँ श्रीँ रत्नवर्षिणि अंकरत्न-स्फटिकरत्न - हीरक - वैडूर्यरत्न - लोहिताक्ष
SR No.032168
Book TitleAdbhut Navsmaranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj, Jayantilal Bhogilal Bhavsar
PublisherLakshmi Pustak Bhandar
Publication Year1977
Total Pages290
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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