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________________ ४४ :: परमसखा मृत्यु नहीं रहेगी, कुछ दुर्दशा होगी, इस डर से अगर सहगमन किया तो वह आत्महत्या ही है। पति की मत्यु के बाद उसकी चिता पर प्रारोहण करने से जब स्त्री मानती है कि पति के साथ उसे रहने को मिलेगा और मरण के भय से इस मौके को खो देना कायरता है, पति-भक्ति या पति-निष्ठा की कमी है, तब वह सच्चा सहगमन है। उसे हम अात्महत्या की कोटि में नहीं डालेंगे। उसकी कोटि ही अलग है। लेकिन हमें विश्वास नहीं होता कि सहगमन के बाद पति और पत्नी दोनों को सहवास का मौका मिलेगा ही। हम उसके बारे में कुछ नहीं जानते; लेकिन हमारा दृढ़ विश्वास है कि स्त्री में पति-निष्ठा कितनी भी उत्कट हो, पति की मृत्यु के बाद इसी दुनिया में रहना और अनेक तरह के कर्तव्यों का पालन करना पत्नी का धर्म है, कर्तव्य है और सहगमन करना धर्म नहीं है, शायद अधर्म हो सकता है । ___ लेकिन सहगमन के आदर्श को मानकर जो स्त्रियां सती हो चुकीं, उनके प्रति हमारे मन में आदर ही है। इसलिए हम उन्हें देवियां कहते आए हैं। लेकिन उनके सहगमन के कार्य का सर्मथन नहीं कर सकते। हमारे देश में एक और प्रथा थी। जहां पर्वत के शिखर पर ऊंची चट्टान हो, वहां भैरव का मन्दिर खड़ा कर देते थे और मानते थे कि उस स्थान से भैरव का जाप जपते अगर कोई कूद पड़े तो उसे आत्महत्या नहीं समझना चाहिए। माना जाता है कि इस तरह की मृत्यु के बाद मोक्ष ही मिलता है। इलाहाबाद-प्रयाग में जहां गंगायमुना का संगम है, वहां पर अक्षयवट पर चढ़कर, पानी में कूदकर चन्द लोग प्राणान्त करते थे। इस प्रथा को तोड़ने के लिए अकबर बादशाह ने अक्षयवट के इर्द-गिर्द एक किला बना
SR No.032167
Book TitleParam Sakha Mrutyu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKaka Kalelkar
PublisherSasta Sahitya Mandal Prakashan
Publication Year1979
Total Pages160
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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