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________________ १४२ :: परमसखा मृत्यु परिशिष्ट १:: वसीयतनामा रोमन लोगों का आग्रह था कि कोई भी आदमी अपना वसीयतनामा बनाये बिना न रहे । हर रोमन, जरूरत पड़ने पर, पुराना वसीयतनामा रद्द करके नया बनाकर रखता था। कहते हैं, वसीयतनामा किये वगैर अगर किसी की मृत्यु हो जाय, तो रोमन-समाज में उसकी प्रतिष्ठा नहीं रहती थी। हमारे देश में इससे बिल्कुल उल्टा वायुमंडल है। बहुत ही कम लोग अपना मृत्यु-पत्र बनाकर रखते हैं। वसीयतनामे के लिए 'मृत्यु-पत्र' शब्द प्रचलित होने के कारण ही शायद यह अरुचि पैदा हुई हो। अपनी मृत्यु की बात मन में लाते ही आदमी रंजीदा हो जाता है। आलस्य और ढीलेपन के कारण भी वसीयतनामा बनाने की बात रह जाती है। हम हिन्दुस्तानियों के इस स्वभाव के कारण जब कभी किसी समर्थ पुरुष का देहान्त होता है, तब उसके पीछे कौटुम्बिक और आर्थिक अव्यवस्था हो ही जाती है और कई लोगों को भुगतना पड़ता है। जिस आदमी के पास अपनी कोई विशेष जायदाद नहीं है, ऐसे आदमी को भी अपने पीछे अपने व्यवहार का व्यवस्था-पत्र या इच्छा-पत्र बनाकर रखना चाहिए। ___ ऐसा इच्छा-पत्र बनाते समय चंद बातें ध्यान में रखनी चाहिए : सयाने आदमी को चाहिए कि अपनी मृत्यु के बाद इच्छापत्र के द्वारा अपनी ही जिद्द चलाकर भूत के जैसा जीने का प्रयत्न वह न करे। कई धनी लोग अपने इच्छा-पत्र के द्वारा
SR No.032167
Book TitleParam Sakha Mrutyu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKaka Kalelkar
PublisherSasta Sahitya Mandal Prakashan
Publication Year1979
Total Pages160
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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