SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 73
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जब एकान्त हो गया, तो बोले - पंडितजी ! एक अत्यन्त दुःखद स्वप्न अभी-अभी देखा है । मैंने स्वप्न में देखा कि मेरे दोनों पुत्र मर गए हैं, तथा मैंने स्वयं उनका दाह-संस्कार किया । उफ् ! ऐसा बुरा स्वप्न, और वह भी प्रातःकाल के समय ! भगवान् जाने क्या होगा ? मैंने दो क्षण विचार किया, पूछा- दाह-संस्कार तुमने अपने हाथों से किया ? – हाँ ! - और साथ में कौन था ? - मेरी पत्नी और मैं, बस दो ही । कहाँ किया ? पंडितजी ! यही तो आश्चर्य है ? श्मशान घाट पर न करके पूना में किया । - मृत्यु कैसे हुई ? - दोनों रेस के मैदान में घोड़े दौड़ा रहे थे, अचानक घोड़े उलट गए और मारे गए । सब कुछ इन आँखों से देखा । और— वह फफक पड़े । - वह फफक रहे थे, और मैं मुस्करा रहा था। इंजेक्शन के प्रभाव से उन्हें नींद आने लग गई थी और मुझे सूर्योदय तक उन्हें जागते रखना था जिससे इस श्रेष्ठ स्वप्न का सुफल समाप्त न हो जाय । मैंने जवाब दिया - चिन्ता की कोई बात नहीं, यह स्वप्न शुभ है, और कल रेस में तुम इनाम जीतोगे, पर तुम्हें जागते रहना है, सोना नहीं है । हाँ यह बात अभी घर के अन्य सदस्यों को नहीं बतानी है । वह हर्ष के मारे उछल पड़े । मुझ पर उन्हें भरोसा है, पर इंजेक्शन भी प्रभाव दिखा रहा था । मैंने घर के सभी सदस्यों को बुला लिया, और कमरे में बिठा दिया। घर का बूढ़ा नौकर ७२
SR No.032162
Book TitleSwapna Jyotish
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarayandatt Shrimali
PublisherSubodh Pocket Books
Publication Year1978
Total Pages132
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy