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________________ और पचास-पचपन वर्षों बाद वाहन में यात्रा करनी पड़ी है। मैंने कहा-प्रभु ! सम्भव है, मैं बाहर होता, जोधपुर में प्रवास पर होता... तुरन्त बोले-ऐसा हो ही नहीं सकता था । स्वप्न में तुम्हारा घर देखा है, तुम्हारे बच्चों से मिला हूँ, बहू को आशीर्वाद दिया है, तुमसे बातें की हैं और तुमसे मिलना इसलिए आवश्यक हो गया था कि मैं वादा कर चुका था कि देहावसान से पूर्व तुमसे मिलूंगा । ___ मैं उनकी वाणी को समझ रहा था-मैं समझ गया था-ऋषिपूत की वाणी असत्य नहीं होती. 'यह जो सामने तास्वी शरीर है, कुछ दिनों तक का ही है और यह सोचकर मन भारी-भारी हो गया। ___ काफी बातें हुईं । भोजन छोड़ रखा था, कुएँ का जल केवल दो बार लेते थे, और कुछ नहीं । आतिथ्य-सत्कार क्या करता ? बच्चों से बातें कीं, हँसे.. पत्नी के सिर पर हाथ रखा ऐसा लगा जैसे धवल कीर्ति मेरे घर मुखरित हो गई हो ! हिमालय की पावनता, स्निग्धता मेरे घर आ गई हो ! सौ सवा सौ वर्ष तक का तपस्वी .. पर पूरे दाँत मौजूद, शरीर में ओज, निर्मल हँसी, शान्त, भोले, पवित्र जैसे बालक हों। रात्रि को जीवन की धरोहर- अमूल्य दुर्लभ मन्त्रों का ज्ञान दिया, उनकी साधना-विधि समझाई, मेरे सामने बैठकर बताया.. बताते गये "समझाते गये "सिखाते गये-कब प्रातः हुआ पता ही नहीं चला। कितना अक्षय अपार भण्डार था ज्ञान का, सिद्धि का उनमें ! ___ दूसरे ही दिन वे चले गये। और कुछ ही दिनों पूर्व जब उनके ब्रह्मलीन होने का समाचार सुना तो एकबारगी ऐसा लगा, जैसे मैं छिन गया हूँ"पृथिवी की एक अमूल्य मणि खो गई है.. अस्तु । पर स्वप्न कितना सटीक था कि बिना मेरा घर देखे, स्वप्न में
SR No.032162
Book TitleSwapna Jyotish
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarayandatt Shrimali
PublisherSubodh Pocket Books
Publication Year1978
Total Pages132
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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