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________________ है। योगी प्रानन्दधन के शब्दों में वह मन आकाश पाताल करता है, वह साँप की भांति निरर्थक-क्रियाएँ करता है, परन्तु सार्थक नहीं होता। जैसे सांप दश प्रारिणोंको खाता है पर उसकी तृप्ति नहीं होती। मन वैसे ही सब जगह जाता है-घूमता है. पर कहीं से कुछ लाता नहीं। मन के चक्कर से मनकी तृप्ति भी नहीं होती। परन्तु जब कोई विशेष घटना मस्तक और मन में उलझन पैदा करती है तब वह स्वप्न कहलाता है। उसका फल होना न होना उसके प्रारब्धके हाथ पर निर्भर है । साथ ही सपनोंका फल लोगोंने अपनी बुद्धिके अनुसार भी निश्चित किया है। पुरानी ऐतिहासिक घटनाके अनुसार हमें यही ठीक जंचता भी है। ____एक बार मूलदेव राजकुमार अपने दुर्दिनोंके फेर में पड़कर संकट के समय किसी धर्मशाला के दालान में एक कापडीके साथ सो रहा था । सूर्य-उदय होते होते दोनों को एक दम समान स्वप्न पाया, कि मानो पूणिमा का चांद आकाशमें चक्कर काटता हुआ नीचे उतरा और मुहमें प्रवेश कर गया। कापड़ीने सवेरे जागते ही एक खाकी बाबा से इसका फल पूछा, उसने कहा कि घी-खाण्डसे सना हुआ तुझे अभी एक सवा सेर अन्न का रोट मिलेगा, वह गेहूं के आटे का होगा, और वही हुआ। ... इधर मूलदेव ने पान-फूल-फल लेकर एक स्वप्नपाठकसे पूछा तो उसने कहा, सातवें दिन तुम्हें इस नगरका राज्य मिलेगा, और वैसा ही हुआ। एक को रोटी मिली और दूसरे को राज्य ! दोनों का स्वप्न एक ही भांति का था और फल दोनों का अलग-अलग ! बताने
SR No.032161
Book TitleSwapna Sara Samucchay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDurgaprasad Jain
PublisherSutragam Prakashak Samiti
Publication Year1959
Total Pages100
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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