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________________ गि उसे खा रहे हैं या उन्होंने उसे अपने घेरे में ले लिया है, अथवा अपनेको वमन करता हुपा देखे तो वह दो महीने तक जीवित रहता है । भेसा, ऊंट, और गधे पर चढकर दक्खन में जा रहा है, या तेल, घी से सना हुआ शरीर देखे तो वह एक मास जीवित रहता है ।।१२३॥ सूर्य और चन्द्रका ग्रहण, या वे धरती पर गिरे जा रहे हैं, ऐसा देखे तो महीनेसे कुछ अधिक दिन जीवित रहता है। लाखके रसको हाथ पैर में लगाता है या उससे हाथ पैर धोता है या उस पर फिसल पडता है तो सात दिन जीवित रहता है। काले रंगका अादमी उसे घर में से खेंचकर बाहर निकालकर ले जाता है, वह एक मास जीवित रहता है ।।१२६॥ मानो शस्त्र द्वारा काटा जा रहा है, या उससे कटकर मर गया है, तो वह बीस दिन जीवित रहता है । लालरंगके फूलोंको अपने पैरोंसे बांध कर स्वप्नमें नाचता है तो उसे कालकी दिशा में एक मासके पश्चात् जाना पड़ता है। यदि स्वप्नमें खून, चर्बी, राध, चमडा, घी, तेलसे भरे गढे में डूबा है ऐसा देखने पर वह एक मास पर्यन्त जीवित रहता है ।।१२६॥ बुद्ध-सम्प्रदायके क्षणिक-वादको दृष्टिसे स्वप्नका वर्णन भन्ते नागसेन इमम्मि लोके नरनारीयो सुपिण पस्सन्ति कल्याणम्पि, पापकम्पि, दिट्ठपुब्बम्पि अदिट्ठपुब्बम्पि, कटपुब्बम्पि, अकटपुब्बम्पि, खेमम्पि, सभयम्पि, दूरेपि, संन्तिके पि, बहुविधानि पि, अनेकवएणसहस्सारिण दिस्सन्ति । किञ्च एतं सुपिणं नाम को च एत पस्सतीति ।-निमित्तमेतं महाराज सुपिणं नाम यं चित्तस्स आपाथमुपगच्छंति च य इमे महाराज सुपिणं पस्सन्ति वातिको सुपिणं पस्सति, पित्तिको सुपिण पस्सति, सेम्हिको सुपिण पस्सति, देवतूपसंहारतो सुपिण पस्सति,
SR No.032161
Book TitleSwapna Sara Samucchay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDurgaprasad Jain
PublisherSutragam Prakashak Samiti
Publication Year1959
Total Pages100
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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