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________________ ४० 1 भों ह्रीं परहसवणे क्ष्मीं स्वाहा, यह मंत्र जपकर सफेद कपड़े में ही सो जाय ॥ १०६ ।। मौन रहकर उपवास करे, उसदिन पापारम्भ सेवन न करे । विकथा और क्रोध, मान, माया तथा लोभकी प्रवृत्ति को अन्तर से हटाकर स्थिर चित्तसे प्रसन जमाकर बैठे । १०००० जप एक चित्त होकर करे । तब उसे स्वप्न दो प्रकार से होते हैं. 'देवका कथन' और साहजिक स्वप्न । परन्तु जहाँ मन्त्र जाप या अनुष्ठान किया जाता है वही देवता वरदान देता है, और वह जैसा भावी बताता है वैसा ही ठीक उतरता है ।११२ जो मंत्रहीन स्वप्न निर्भ्रान्ति अवस्था में देखता है, जबकि साधक निश्चिन्त है, उसके शरीर की सब धातुएं अपने-अपने स्थानपर ठीक तरह काम करती रही हैं । उस समय आया हुआ स्वप्न 'सहज' कहलाता है । इसरीतिसे स्वप्न दो कारण से आते हैं । पहले पहर में देखे गये स्वप्नका फल दश वर्ष में होता है दूसरे पहर में देखे गये स्वप्न का फल पांच वर्ष में होता है । तीसरे पहर में देखेगये स्वग्नका फल छः मास में होता है । निशान्त की दो घडीरात शेष रहने पर देखे गये स्वप्न का फल दश दिन में, और सूर्योदय होते-होते देखे गये स्वप्नका फल तत्काल होता है । सोते हुये रातमें जो आदमी अपने पूर्वजकी प्राकृति हाथ, पैर, घुटने, मस्तक, जंघा, कन्धे, और पेट आदिको आकृति रहित देखे तो उसका फल क्रमश: इस तरह होता है— हाथ न हों तो चार मास जीवित रहे, पैर न हों तो तीनवर्ष, घुटने न हों तो एक वर्ष, शिर न हो तो पांच दिन, जंघा न हो तो दो वर्ष, कंधे न हों तो एक महीना, पेट न हो तो आठ मास तक जीवित रहता है । ११६ छत्र न हो तो राजाका मरण कहा जाता है । परिवार न हो तो परिवारकी अल्पमृत्युकी सूचना समझी जाती है । यदि स्वप्न में कव्वे और 1
SR No.032161
Book TitleSwapna Sara Samucchay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDurgaprasad Jain
PublisherSutragam Prakashak Samiti
Publication Year1959
Total Pages100
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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