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________________ ३३ १७ – १ – इन वश महास्वप्नोंका फल - श्रमरणभगवान् महावीरने स्वप्न में जिस भयकर और तेजस्वी रूपवाले ताड जैसे लम्बे पिशाच को हराया था ( उसके फलस्वरूप ) श्रमरण भगवान् महावीर ने मोहनीय कर्म को समूल नष्ट किया । भगवान् महावीर शुक्लध्यानको पाकर २- श्रमरण विचरे । ३ – विचित्र स्वसमय और परसमयके ( नाना विचार युक्त) द्वादशांग गरिपिटकका वर्णन किया, प्रतिपादन किया, दर्शाया, निदर्शन कराया, उपदर्शन कराया, ( आचरण शास्त्रसे दृष्टिवाद तक ) ४ - ज्ञातपुत्र महावीरने दो प्रकारका धर्म (गृहस्थधर्मं मौर मुनिधर्म ) कहा । ५ – साधु, साध्वी, श्रावक और श्राविका रूप चतुर्विध संघ कायम किया । ६ – भुवनवासी, वानव्यन्तर, ज्योतिषिक मोर वैमानिक देवोंको प्रतिबोध दिया । ७ – इस तरुण तपस्वी श्रमरणने श्रनादि अनन्त संसाररूप वनको पार किया । ८- भगवान् महावीरको अनन्त, अनुत्तर, निरावरण, निर्व्याघात, समग्र, श्रौर परिपूर्ण केवलज्ञान- केवलदर्शन प्राप्त हुआ । ६ - भगवान् की देवलोक, मनुष्यलोक और प्रसुरलोक में 'यह श्रमण भगवान् महावीर हैं,' ऐसी उदारकीर्ति, स्तुति, सन्मान और यश व्याप्त हुआ । १० - भगवान्ने केवली होकर देव मनुष्य और असुरोंकी परिषद् में धर्मका यथार्थ स्वरूप कहा ।
SR No.032161
Book TitleSwapna Sara Samucchay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDurgaprasad Jain
PublisherSutragam Prakashak Samiti
Publication Year1959
Total Pages100
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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