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________________ ३२ गौतम ! जब चक्रवर्तीका जीव गर्भ में अवतरित होता है तब चक्रवर्तीकी मातायें इन तीस महास्वप्नों में से १४ महास्वप्न तीर्थकर की माताओं की तरह ही देखकर जाग्रत होती हैं। १३-१४-१५- इसीप्रकार वासुदेव, बलदेव और माण्डलिक राजाओंकी मातायें इन ४० महास्वप्नोंमें से क्रमशः ७-४-और १ महास्वप्न देखकर जाग जाती हैं। छमावस्थामें ज्ञातपुत्र महावीर प्रभुने भी १० स्वप्न देखे थे-जब श्रमण भगवान महावीर देव छद्मावस्था- ज्ञानादि आत्मगुणोंकी अपूर्ण अवस्था में थे,तब आप एक बार रातके अन्तिम पहर में १० महास्वप्न देखकर जग गये थे। वे १० स्वप्न इसप्रकार हैं १-'एक बड़े भयंकर और चमकीले रूप वाले ताड़ जैसे लम्बे पिशाचको हराया, ऐसा स्वप्न देखकर सजग हुए थे। __२-एक बड़े सफेद पाँखवाले पुस्कोकिल (नर जाति के कोयल) को देखा। ३-एक बड़े चित्रविचित्र पाँखवाले पुस्कोकिलको स्वप्न में देखा। ४-एक बड़ी सर्वरत्नमय मालाका जोडा। ५-एक बडे और सफेद गायका गोल । ६-चारों ओर से खिले फलोंका पद्म सरोवर । ७-हजारों तरंगों और कलोलोंसे व्याप्त एक महासागरको अपने दोनों हाथों से तैर कर पार करना । ८-तेज से चमचमाट करते सूर्यको देखना। ६-एक बड़े मनुष्योत्तर पर्वतको नील वैडूर्यवर्ण जैसे अपने प्रान्तों द्वारा सब ओर से आवेष्टित और परिवेष्टित देखना। १०-एक बड़े मन्दर (मेरु)पर्वतकी मन्दर चूलिकाके ऊपर अपनेको सिंहासनस्थ देखकर जगना ।
SR No.032161
Book TitleSwapna Sara Samucchay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDurgaprasad Jain
PublisherSutragam Prakashak Samiti
Publication Year1959
Total Pages100
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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