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________________ सकताह । एक सामाजिक कार्यकर्ता जो प्रत्यक्षरूप में सक्रिय जीवन बिताता है, किसी प्रसिद्ध सामाजिक संस्था का सभासद् बनाया जाता है। इस सस्था के सभ्य बनने में वह गर्व समझता है। यदि उसी संस्थाके सदस्यके रूपमें या प्रधानके तौर पर किसी दूसरे व्यक्तिकी, जिससे उसकी बिल्कुल न पटती हो, नियुक्ति हो जाय तो पहले सभ्यको यह बात भली न लगेगी। वह अपना त्यागपत्र देने के लिए तत्पर हो जायगा और बोलेगा कि यदि इस संस्था के प्रधान की हैसियतसे ऐसे निकम्मे आदमियों की नियुक्ति हो सकती है तो इस संस्थाका सभ्य बनने में कोई लाभ नहीं है । सामाजिक संस्थाके उच्च आदर्शों को, जिनके लिए वह सर्व साधारणमें काम कर रहा था, एक दम भल जाता है, और एक नटखट बालक के समान व्यवहार करने लग पड़ता है और यही चपलता-विकलतासे मनमें गहरा घर कर जाती है तब खाते-पीते-सोते-जागते उनही विचारोंसे वह उद्विग्न रहता है । उसे सपने भी इन्हीं बातों के प्रोया करते हैं। यह अहंभाव-अचेतन मन या जड़प्रकृतिका मेल है क्योंकि कार्मण-वर्गणाएँ-जडप्रकृति ही होती हैं। इससे स्पष्ट है कि सस्थाके उक्त कार्य में जो उत्साह था मात्र वह इसीलिए था कि संस्थाके सभ्यकी हैसियतसे उसे अपने अहंभावको सन्तुष्ट करने का अवसर मिलता था। अचेतन मनके विचारोंको चीन्हने के लिए हमें अपने स्वप्नों का अन्वेषण करना चाहिए। हमें नाना स्वप्न आते हैं और स्वप्नको अवस्था में हम भले बुरे सुगम-असुगम सब प्रकारके काम करते हैं। इस ढंगके हमारे चेतन व्यवहारसे एक दम अलग एवं प्रतिकूल विचार जिस स्थान में आते हैं वही अचेतन मन कहलाता है। हमारे स्वप्न अचेतन मनकी गहराई तक
SR No.032161
Book TitleSwapna Sara Samucchay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDurgaprasad Jain
PublisherSutragam Prakashak Samiti
Publication Year1959
Total Pages100
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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