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________________ सिप्पेहिं आगमेहिं य नामक्खायनिवायउवसग्ग-तद्धिअ-समाससंधि-पदहेतु-जोगिय-उणाइ-किरिश्राविहारण-धातु-सर-विभत्ति वण्णजुत्तं तिकल्लं दसविहं सच्चं.------वत्तव्वं । (सूत्र २४) अर्थ-हे भगवंत ! किस प्रकार का सत्य बोलना चाहिये ? (भगवान-) जो द्रव्य, पर्याय, गुण, कर्म, बहुविधशिल्प तथा पागम से युक्त हो और नाम, पाख्यात, उपसर्ग, तद्धित, समास, संधि, पदहेतु, योगिक, उणादि, क्रिया-विधान, धातु-स्वर, विभक्ति और वर्ण से युक्त हो, वैसा त्रिकालविषयक दसविध सत्य बोलना चाहिये । इस अागम-प्रमाण से स्पष्ट है कि मोक्षाभिलाषी मुमुक्षु आत्मा को श्रुत के सम्यग् बोध के लिए व्याकरण-शास्त्र का अवश्य अभ्यास करना चाहिये। महोपाध्याय श्रीमद् विनयविजयजी म. ने 'हैमलघुप्रक्रिया' के मंगलाचरण में 'श्रीहैमव्याकरण' को भी नमस्कार किया है और उन्होंने युक्ति-प्रयुक्ति के द्वारा उसकी नमस्करणीयता को सिद्ध किया है। 'श्रीहैमव्याकरण' सम्यग्दृष्टि द्वारा प्रणीत होने से श्रुतज्ञान रूप है और सकल शास्त्रों की व्युत्पत्ति बोध में हेतु रूप होने से लोक में भी महान् उपकारी है, अतः उसको नमस्कार समुचित ही है और यह व्याकरण सरस्वती रूप होने से व्याकरण को नमस्कार करने से सरस्वती को भी नमस्कार हो जाता है। व्याकरण की महिमा का गान करते हुए किसी विद्वान् ने ठीक ही कहा है अर्थप्रवृत्तितत्त्वानां, शब्दा एव निबन्धनम् । तत्त्वावबोधः शब्दानां, नास्ति व्याकरणं विना ।। अर्थ-विषयक प्रवृत्ति के रहस्य में शब्द ही कारण हैं और शब्दों का वास्तविक बोध व्याकरण के बिना संभव नहीं है। ___ व्याकरण के सम्यग् बोध के अभाव में वारणी के विचित्र (उपहास्य) प्रयोगों पर कटाक्ष करते हुए किसी कवि ने ठीक ही कहा है नाङ्गीकृतं व्याकरणौषधानां, अपाटवं वाचि सुगूढमास्ते । कस्मिश्चिदुक्ते तु पदे कथंचित् स्वैरं वपुः स्विद्यति वेपते च ।। भावार्थ-'जिन व्यक्तियों ने व्याकरण रूप औषध का सेवन नहीं किया है, उनकी वाणी में अत्यंत अपटुता होती है और इस कारण जब वे किसी व्याकरणविद् के मुख से कोई पद/वाक्य सुनते हैं,....तो उस वाक्य के अनवबोध के कारण उनके देह में पसीना छूटने लगता है और उनकी देह काँपने लगती है।' अस्तु ! विद्वज्जन के आगे व्याकरण की महिमा का गान, यह तो माता के सामने, मामा के घर के वर्णन समान ही है, क्योंकि विद्वज्जन व्याकरण के माहात्म्य से सुपरिचित ही होते हैं। प्रस्तुत 'श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम्' के ग्रन्थकर्ता कलिकालसर्वज्ञ श्रीमद् हेमचन्द्राचार्यजी के पुण्यनाम से भला कौन अपरिचित होगा? वे बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। गुर्जरसम्राट् सिद्धराज और परमार्हत्
SR No.032130
Book TitleSiddha Hemchandra Shabdanushasan Bruhad Vrutti Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVajrasenvijay
PublisherBherulal Kanaiyalal Religious Trust
Publication Year1986
Total Pages560
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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