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________________ एका ७२१-७३१] खर्च पानेका अधिकार आदि . या और खासकर जब कि खानदानमें विधवा द्वारा जवाहिरातोंके पहने जानेका रिवाज़ हो, श्यामाबाई बनाम पुरुषोत्तमदास 90 I.C. 12421L..W. 5517 A. I. R. 1925 Mad. 645. दफा ७३० अन्य लोगोंके भरणपोषणके ख़र्चकी रकम - पत्नी और विधवाके अलावा दूसरे लोगोंके भरण पोषणके खर्च पाने की प्रार्थनापर अदालत जव उनके खर्चकी रकम निश्चित करने लगेगी तब वह उपरोक्त दफा ७२६ में कही हुई बातोंका झ्याल कर लेगी-अर्थात् अन्य लोगों से भी वे बातें लागू समझी गयी हैं, देखो-21 All. 232. दफा ७३१ भूखे मरनेसे बचानेका खर्च भूखे मरनेसे बचानेका खर्च भी एक प्रकारका भरण पोषणका खर्च है और यह खर्च उस स्त्री या विधवाको दिया जाना चाहिये कि जिसने व्यमिचार त्याग दिया हो। जिस स्त्री या विधवाने व्यमिवार त्याग दिया हो और फिर नेकचलन बन गयी हो उसको भूखे मरनेसे बचानेका खर्च पानेका अधिकार है या नहीं? इस बातका अभीतक निर्णय नहीं हुआ। बम्बई हाईकोर्टने होनम्मा बनाम टिमन्नाभट्ट (1877)| Bom. 559. में स्त्रीका ऐसा अधिकार माना है। परंत बाल बनाम गंगा (1882) 7 Bom. 84. में नहीं माना। हाल के एक मुकदमेमें बम्बई हाईकोर्टने कहा कि "पुराने हिन्दूशास्त्रोंसे मालूम होता है कि हिन्दू स्त्रीको उसका पति बिलकुल ही नहीं छोड़ दे सकता । यदि स्त्री व्यभिचारिणी है, तो भी पति उसको घरमें रोक कर रखे और उसको जीवन कायम रखनेके लिये भोजन और वस्त्र देवे । इसके सिवाय उस स्त्रीका और कोई हक नहीं है । परंतु यदि स्त्री पश्चात्तापको नेकचलन बन जाय और प्रायश्चित्त आदि करके शुद्ध होजाय तो उसको सब प्रकारसे सामाजिक और वैवाहिक हक्क फिर प्राप्त होनेका अधिकार है । लेकिन अगर उसने किसी नीच जातिके पुरुषसे व्यभिचार किया हो तो प्रायश्चित्त करने पर भी वह भाण पोषणका खर्च सिर्फ जीवन रखने के लिये और रहने के स्थानके सिवाय और कुछ नहीं पासकती', देखो-पाराभी बनाम महादेवी 34 Bom. 273-2833 12 Bom. L. R. 196-200. मदरास हाईकोर्टकी राय है कि वैसी स्त्री भूखी मरनेसे बचनेका खर्च भी नहीं पासकती-( 17 Mad 392); इसी अदालत ने पहिलेके एक मुकदमेमें यह भी कहा था कि इस प्रश्नका अभी तक कुछ निर्णय नहीं हुआ देखो-5 Mad. H. C. 150; बंगाल हाईकोर्टने रमानाथ बनाम रजनीमणि दासी ( 1890) 17 Cal. 674-6797 में यह राय प्रकट की कि उस स्त्रीको सिर्फ जीवन निर्वाहके लिये खर्च देना चाहिये । प्राचीन कई शास्त्र और नज़ीरें भी खर्च देनेके ही पक्षमें हैं। इसलिये उचित यही है कि ऐसी स्त्रीको जीवन रखने के लिये खा दिया जाय, देखो-स्टेज हिन्दूला 112
SR No.032127
Book TitleHindu Law
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shukla
PublisherChandrashekhar Shukla
Publication Year
Total Pages1182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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