SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 948
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ दफा ७०६ ] स्त्रियोंकी वरासतकी जायदाद भावी वारिस के साथ समझौता जायज़ होना - माताप्रसाद बनाम नागेश्वर सहाय 30W.N. 1; L.R.6P. C. 195; 52 I. A. 398; 28 O. C. 352; A. I. R. 1925 P. C. 272; 50M. L. J.18 ( P. C ) ८६ जब किसी विधवाकी जायदाद के खरीदारोंमें से कुछ भावी वारिस भी हों तो बयनामे की वजहसे यह नहीं माना जा सकता कि भावी वारिसोंकी रजामन्दी हासिल करली गई है - के० सीतारामप्पा बनाम आर० समुद्भुदू 21 L. W. 69; 86 I. C. 4; A. I. R. 1925 Mad. 384. जीवित रहने के अधिकारको छोड़ने वाले प्रश्नका सम्बन्ध इरादे या नियत से है, जो कि प्रत्येक मामलेमें दस्तावेज़ बटवारे द्वारा यदि कोई हो या अन्य परिस्थितियों द्वारा साबित किया जाना चाहिये कि आया विधवाओं ने अपने जीवित रहने के अधिकारोंको भविष्य में प्रयोग करने के लिये सुरक्षित रक्खा है, या उनको तिलाञ्जलि दे दी है -1 – 14 M. L. J 175, Foll और यह स्पष्ट शहादतों द्वारा साबित किया जाना चाहिये कि विधवाओं को अपने जीवित रहने के अधिकारोंका ज्ञान था, और उन्होंने अपनी इच्छासे उनका त्याग किया है - मेडै दालवाय कलिआनी अन्नी बनाम मेडै दालवाय थिरु मलायप्पा मुद्दालियर 1 A. I. R. 1927 Mad. 115. दफा ७०९ मंजूरी देनेका तरीक़ा मंजूरी देनेका तरीक़ा कुछ नहीं है, चाहे जिस तरहसे मंजूरी दीगई हो, मंजूरी दस्तखत करके, या दस्तावेज़पर दस्तखत करके, दी जा सकती है ( 13 C. W. N. 931 ). या विक्रीके बाद उसके मालूम होनेपर किसी तरहका एतराज़ न करनेसे मंजूरी समझी जा सकती है; देखो -- महेशचन्द्र बोस बनाम उग्रकान्त वनरजी 24 W. R. C. R. 127. सब हालतोंको जान कर जब मन्जूरी दीगई हो तभी वह मंजूरी, मंजूरी समझी जायगी -श्यामसुन्दरलाल बनाम अच्चनकुंवर 25 I. A. 183; 21 All. 71, 2 C. W. N. 729-733. मंजूरी सब दोषोंसे रहित होना चाहिये यानी उसमें कोई ऐसा धोखा या ग़लती न हो कि जिससे विक्री वगैरा नाजायज़ हो जाय, , और मंजूरी नेकनीयती तथा बिना किसी दबावके दीगई हो; देखो -- कोलॅंडिया शुलागन बनाम वेदामन्थू शुलागन 19 Mad 337. इस केसमें जायदादका इन्तक़ाल रिवर्जनरको नुकसान पहुंचानेकी गरज़से किया गया था । परदानशीन औरत की मंजूरी में इस बातका स्पष्ट सुबूत होना चाहिये कि उस स्त्रीने सब हालातों और अपने अधिकारोंको समझकर वह मंजूरी दी थी। तथा उसकी परदानशीनीकी हालतकी बजेहसे उसे किसी तरहका धोका नहीं दिया गया हो देखो -- भगवत दयालसिंह बनाम देवीदयाल शाह 35 I A. 48; 35 Cal. 220; 10 Bom. L. R. 230. अगर कोई एतराज़ करनेसे चूक जाय मगर असल में उसने मंजूरी न दी हो तो वह मन्जूरीका देना नहीं समझा जायगा ।
SR No.032127
Book TitleHindu Law
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shukla
PublisherChandrashekhar Shukla
Publication Year
Total Pages1182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy