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________________ दफा ७०७-७०८] स्त्रियोंकी वरासतकी जायदाद ८६५ वह मंसूत्र नहीं कराया जाता । उपेन्द्रनाथ जाना बनाम शिवदासी देवी 88 1. C. 898; A. I. R. 1925 Cal. 1053. ___ क़र्जा देना या न देना उसकी मरजी पर है-एक स्त्री जो कि क़ब्ज़े की अधिकारिणी है और उस समय समस्त जायदादकी प्रतिनिधि है यदि किसी कर्जका बोझ जायदादपर है और उसकी पाबन्दी उसपर लाजिमी है,यह उसका अधिकार, कि वह अपनी समझले इसबातका फैसला करे, कि आया वह कर्ज अदा करेगी या नहीं। इसके अतिरिक्त यह लाजिमी नहीं है कि वह व्यक्ति, जिसके हकमें उन्तकाल किया गया है इस प्रकारका कोई दावा स्थापित करे, कि यदि कर्ज न अदा किया जायगा, तो परिणाम स्वरूप किसी प्रकार का बुरा नतीज़ा पैदा होगा। अम्बिकाप्रसाद बनाम माधोप्रसाद 85 I. C. 868 (1), A. 1. R. 1925 Ail. 621. दफा ७०८ इन्तकालके लिये रिवर्ज़नरोंकी मंजूरी ___ अगर कोई स्त्री जो किसी शर्तबन्द जायदादकी मालिक हो तो वह उस जायदादमें अपना सम्पूर्ण हक़ या उसका कोई भी भाग बेचे और यह विक्री किसी कानूनी ज़रूरतके लिये न हो तो भी इस विक्रीसे उस विधवाके सारे हनका इन्तकाल हो जाता है मगर शर्त यह है कि विक्रीके समय या विक्रीके बाद उन सब लोगोंकी मंजूरी हो गयी हो जो उसके बाद रिवर्जनर हो सकते हों, देखो--21 Mad. 128; में मदरास हाईकोर्टने कहा कि किसी जायदादके किसी भागका बेचा जाना अच्छी बात नहीं है, मगर 32 Mad. 206; में इसके विरुद्ध फैसला हुआ तथा 31 Mad. 366-370; 35 I. A. 1; 30 All. 19 25 Bom. 129. भी देखो। विक्रीके समय या विक्रीके पश्चात् रिवर्जनर वारिसकी मंजूरी हो जाने से वह इन्तकाल जायज़ माना गया, देखो--बजरंगसिंह बनाम मनिकर्णिका बख्शसिंह 36 I. A. 1; 30 All. 1; 9 Bom. L. R. 1348; 17 Cal. 896%; 34 Bom. 165; 10 Cal. 1102. __ अगर उस स्त्रीके बादकी वारिस भी कोई सीमाबद्ध अधिकारकी स्त्री हो तो उस स्त्री की और उसके बादके वारिसकी भी मंजूरी लेना ज़रूरी होगा--जैसे किसी विधवाके मरनेके बाद लड़की वारिस होने वाली है जिसके एक लड़का है तो इन्तकालके बारेमें लड़की और उसके लड़केकी भी मंजूरी ज़रूरी होगी। सिर्फ स्त्री रिवर्जनरकी मंजूरी इन्तकालके जायज़ करनेके लिये काफ़ी नहीं होगी; देखो--गुलाबसिंह बनाम रावकरनसिंह 14 M. I. A. 176; 10 B. L. R. 1; बिपिन बिहारीकुंडू बनाम दुर्गाचरण बनरजी 35 Cal. 1086; बम्बई स्कूल में यह बात ज़रूरी नहीं है क्योंकि वहां 109
SR No.032127
Book TitleHindu Law
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shukla
PublisherChandrashekhar Shukla
Publication Year
Total Pages1182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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