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________________ स्त्रियों के अधिकार [ग्यारहवां प्रकरणे खर्च उठाये । विधवा द्वारा जिसने पुत्रकी जायदादको वरासतसे प्राप्त किया हो अपने पति के भाईके लड़केकी लड़कीकी शादीके लिये जायदादका रेहन करना जायज़ है और एक कानूनी आवश्यकता है। यह भी तय हुआ कि अपने गत पतिकी जायदाद पर विधवाके अधिकारोंमें, कोई अङ्गरेज़ी क़ानून समान परिस्थितिके अनुसार लागू नहीं होते। अतएव इस सम्बन्धमें विचार करने के समय किसीको पश्चिमीय क़ानूनके चक्करमें पड़कर परेशान न होना चाहिये । समर्पण करदेनेके अधिकार और किसी खास अभिप्रायके लिये इन्तकाल करने के अधिकारमें अन्तर है । बैंजनाथ राय बनाम मंगलाप्रसाद ( 1925) P. H.C. C. 271, 90 I. C. 7:25 6 Pat. L. J.731. दफा ७०७ कहांतक अधिकार काममें लाये जा सकते हैं ? मुश्तरका खानदानके मेनेजरकी तरह, विधवाको भी उसके अधिकारों के काममें लाने की उचित शक्ति प्राप्त होना ज़रूरी है, शर्त यह है कि वह अपने पीछे होनेवाले वारिसके लाभका उचित स्याल रखे जैसाकि 11 Bom. 320, 324; 18 Boni. 534; में कहा गया है। यह माना गया है कि किसी रेहनमामाकी मियाद पूरी होनेसे पहिले यदि विधवा जायदादको बेंचकर उसे छुडाले तो वह बिक्री जायज़ होगी। अगर जायदाद रेहन करने की अपेक्षा उसके बेचनेमें लाभहो तो विधवा उसके रेहन करनेके लिये मज़बूर नहीं है, और न अपनी ज़ाती जिम्मेदारी पर कर्ज लेनेके लिये मजबूर है, देखो--31 Mad. 153, 9 W. R C. R. 1073 26 Cal. 820; 3 C. W. N. 470. विधवाकेलिये अकसर यह असम्भव होता है कि वह जायदादका ठीक उतना ही हिस्सा बेचे जितनी रकमकी उसे ज़रूरत है अगर इस सिलसिले में वह ज़रूरतसे ज्यादा हिस्सा भी बेच डाले तो भी बिक्री जायज़ मानी जायगी, देखो--कमिक्षाप्रसाद राय बनाम जगदम्बा दासी 5 B. L. R. 508-520%; फेलारामराय बनाम बगलानन्द बनरजी 14 3. W. N. 895; विधवा जायदाद रेहन करके उतना कर्ज ले सकती है जितना कि उसे कानूनी ज़रूरतके लिये आवश्यक है, देखो-ललित पाण्डे बनाम श्रीधर देवनरायनसिंह 5 B. L. R. 176; एक मुकदमे में दत्तक पुत्रकी वली विधवाने, बलीकी हैसियतसे जायदाद का इन्तकाल किया पीछे दत्तक नाजायज़ हो गया तो माना गया कि दत्तक नाजायज़ होनेकी वजहसे जायदादके इन्तकाल पर कोई असर नहीं पड़ता अर्थात् इन्तकाल जायज है, देखो--14 Cal. 401. बिना कानूनी आवश्यकताके विधवा द्वारा किया हुआ इन्तकाल काबिल मंसूखी है, किन्तु वह तबतक जायज़ रहता है जब तक कि भावी वारिस द्वारा
SR No.032127
Book TitleHindu Law
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shukla
PublisherChandrashekhar Shukla
Publication Year
Total Pages1182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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