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________________ एफा ७०१-७०३] स्त्रियोंकी वरासतकी जायदाद ५५ उस व्यक्तिके कन्धे से जिसके हक़ में इन्तकाल किया गया है, हटा कर भावी वारिसों पर नहीं डालती। सुलेमान साहेब बनाम पी० वेंकटराजू 21. L. W. 115; 86 I. C. 195; A. I. R. 1925 Mad. 670. दफा ७०२ ज़रूरतका दबाव जब तक ज़रूरत वास्तवमें न पैदा होजाय तब तक विधवा या दूसरी सीमावद्ध स्त्री मालिक रुपया कर्ज नहीं ले सकती, देखो-मुल्लाकाल बनाम मादाचट्टी 6 Mad. Jur. 261; और देखो मिस्टर मेनका हिन्दूलॉ ७ एडीशन ६३४. रुपया किसीसे कर्ज लेनेके लिये स्पष्ट ज़रूरत और ज़रूरतका दबाव वास्तविक होना चाहिये, देखों--धर्मचन्द्रलाल बनाम भवानी मिसराइन 24 I. A. 183; 25 Cal. 1897 1 C. W.N. 697, बैंजनाथप्रसाद बनाम विसनविहारी सहायसिंह 19 W. R. C. R. 79. ज़रूरत का दबाव अवश्य बाहर से होना चाहिये केवल "जायदाद को और भी उत्तम बनानेकी इच्छा” इस तरह की ज़रूरत जायज़ नहीं समझी जाती। मगर जायदादको बचाये रखने की ज़रूरत ऐसी ज़रूरत मानी गयी है कि जिसपर कर्ज लिया जासके। कानूनी ज़रूरत न हो और फिर भी जायदाद के फायदे के लिये कर्ज लियागया हो, मस्लन् विधवाके हिस्सेदारने कर्ज लेकर विधवाके हिस्सेकी मालगुज़ारी सरकारी चुकाई हो तो ऐसी सूरतमें भी विधवा की जायदादका इन्तकाल नहीं माना जायगा, देखो-उपेन्द्रलाल मुकरजी बनाम गिरीन्द्रनाथ मुकरजी 25 Cal. bG5, 2 C. W.N. 425; अपने पति की जिन्दगीमें विधवाने जो कर्ज़ चुकाये हों उनके लिये भी जायदाद का इन्तकाल नहीं जायज़ माना जायगा, देखो-हेमन्त बहादुर बनाम भवानी कुंवर 30AIL. 352, 33 All. 3425 13 Bom. L. B. 354. विधवाने किसी घरू समझौतेकी वजह से पतिसे पायी हुई जायदाद का कोई भाग छोड़ दिया हो तो विधवाके मरनेपर उसके रिवर्जनर इस बात के पाचन्द नहीं होंगे, उन्हें विधवाके मरने पर यह जायदाद भी मिलेगी मगर शर्त यह है कि वह रिवर्जनर वारिस उस समय पैदा होगये हों और कभी उस जायदादके छोड़ देने की मंजूरी न दी हो, देखो-आसाराम सथानी बनाम चराडीवरण मुकरजी 13 C. W. N. 147. दफा ७०३ सम्पूर्ण जायदादके इन्तकालका अधिकार ___ हर एक सीमाबद्ध मालिकको कानूनी ज़रूरतों के लिये ( दफा ६०२, ७०६). सम्पूर्ण जायदादके इन्तकाल करलेका अधिकार प्राप्त है। एक पतिकी दो विधवाओंके होने में या अधिक होने में आपसमें बटवारा होनेपर उनमें से एकको जो हिस्सा मिले, कानूनी ज़रूरतके लिये वह अपने उस सम्पूर्ण हिस्से का इन्तकाल कर सकती है, देखो - ठाकुर मनीसिंह बनाम दायीरानी कुंवर
SR No.032127
Book TitleHindu Law
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shukla
PublisherChandrashekhar Shukla
Publication Year
Total Pages1182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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