SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 928
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ दफा ६६२ ] स्त्रियों की वरासत की जायदाद अननचन्द्र मण्डल बनाम नीलमनी 9 Cal. 758; 10 I. A. 150; 10 Cala 324; 13 C. L. R. 418; श्रीधर चट्टोपाध्याय बनाम कालीपद चक्रवर्ती ( 1911 ) 16 C. W. N. 106. ちぎら जायदादकी जो आमदनी सीमावद्ध स्त्री मालिक अपने मरते समयतक अपने कामोंमें न लाई हो वह उसके बाद उसके स्त्रीधन के वारिसको नहीं मिलेगी बल्कि रिवर्जनरको मिलेगी 10 Bom. 478; 5 Cal. 512; 4 C.R. R. 511, 423. जब किसी दस्तावेज़ या वसीयत नामाके द्वारा हिन्दू विधवाको इस बातका पूरा अधिकार दिया गयाहो कि वह मुनाफे को अपने काममें लावे तो मुनाफे की जितनी रक्रम उसके मरनेके समयतक उसके काम में आने से बच गयी हो वह विधवा के वारिसको मिलेगी । दफा ६९२ एकसे अधिक विधवायें जहां पर एकसे अधिक विधवाएँ हों ऐसे मामलेमें जायदाद के प्रबन्धकीं अधिकारिणी बड़ी विधवा होगी अर्थात् पहिले ब्याही हुई विधवा होगी- जिजोईं अम्बाबाई साहबा बनाम कामाक्षीबाई साहबा 3 M. H. C. 424. अधिक विधवाएँ उस जायदादको अलग अलग भोगनेके लिये आपसमें बांट सकती हैं मगर शर्त यह है कि उनके पश्चात् होनेवाले वारिसके छक्रमें किसी तरह की हानि न पहुंचती हो 29 Bom. 346; 7 Bom L. R 238. एक विधवा पति से प्राप्त जायदादको बिना दूसरी संयुक्त विधवाके सहयोग नहीं छोड़ सकती - बी अन्ना नायडू बनाम जग्गू नायडू A. I. R 1925 Mad. 153. विधवा द्वारा समर्पणके जायज़ होनेके लिये, आवश्यक हैं कि वह पूरी जायदादका समर्पण हो, और साथही साथ वह क़ानूनी भी होना चाहिये, केवल भावी वारिसोंमें जायदादके तकसीमका प्रबन्ध न होना चाहिये - इन्द्रनारायण मन्ना बनाम सर्वस्वदासी 87 1. C. 9303 41 C. L. J. 341, A. I. R. 1925 Cal. 743. विधवा जीवित रहने के अधिकारका त्याग - दो संयुक्त विधवाओं मैं से किसी एक को उस जीवित रहने के अधिकारको त्याग करने में कोई क़ानूनी कावट नहीं है, जो वह किसी मुन्तलिलेहकी उस जायदाद के वापस लेने में प्रयोगकर सकती है, जो उसे ( मुन्तलि अलेइको) संयुक्त विधवा द्वारा, दोनों के बटवारे के बाद मुन्तक़िल कीगई है-मेडै दालयाय कलिआनी अन्नी बनाम मेडै दालवाय थिरुमलाप्पा मुद्दालियर A. I. R. 1927 Mad. 115. संयुक्त विधवाओं में से कोई एकके द्वारा इन्तकाल - दो संयुक्त विधवाओं में से कोई एक विधवा बिना दूसरीकी रजामन्दीके अपने पतिको जाय
SR No.032127
Book TitleHindu Law
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shukla
PublisherChandrashekhar Shukla
Publication Year
Total Pages1182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy