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________________ दफा ६७०-६७१] रिवर्जनरके अधिकार ८२३ जायदादके इन्तकालकी मन्सूखीं और जायदाद के नुक्सान रोकने का दावा, अगर पहिला रिवर्जनर विधवासे मिल जानेके कारण या उस इन्तकालको मंजूर कर लेनेके कारण या तमादी होजाने की वजहसे या अपना और अपने रिवर्जनरका हक़ छोड़ देनेकी वजहसे करनेसे इनकार करे, तो दूरका रिवर्जनर दावा कर सकता है, देखो-बखतावर बनान भगवाना (1910) 32 All. 176; झूला बनाम कांताप्रसाद 9 All. 441; 4 All. 16, 2 All 41; 10 Bom. H. C. 351; 8 Cal. L. R. 381, 32 Cal. 623 28 Mad.73 6 All. 428. __ अगर किसी सीमावद्ध स्त्रीका रिवर्जनर भी सीमावद्ध अधिकार वाला हो तो उसके बाद वाला रिवर्जनर अगर चाहे तो दावा कर सकताहै। कलकत्ता और मदरास हाईकोर्टकी यही रायहै, देखो -32 Cal. 62, 15 All: 132; 13 Mad. 195; 15 Mad. 422; 33 Mad. 410. लेकिन इलाहाबाद हाईकोर्ट इस रायको नहीं मानती। उसकी राय यह है कि सीमावद्ध रिवरज़नरके यादवाला रिवर्जनर उसी सूरतमें दावा कर सकताहै जब कि सीमावद्ध रिवर्जनर और स्त्री मालिक दोनों आपसमें मिल गयेहों, देखो-ईश्वर नारायण बनाम जानकी 15 All. 132; 6 All. 428; 6 All. 431. इलाहाबाद हाईकोर्टमें जजोंकी राय यह हुई कि इस तरह का दावा यानी दत्तक खारिज करा पानेका दावा या विधवाके किसी और ऐसे कामोंका दावाकि जिस कामसे रिवर्जनरको नुकसान पहुंचने वाला हो, यद्यपि प्रथम रिवर्जनरके पीछे वाले रिवर्जनर भी दायर कर सकते हैं तो भी साधारणतः पहिले रिवर्जनरको दावा दायर करना चाहिये। हमारी राय यह है कि बहुत दूरका रिवर्जनर भी दावा दायर कर सकता है अगर उसके पहिले वाले सब रिवर्जनर विधवा या सीमावद्ध मालिकसे मिल गये हों या उसकी कार्रवाई में हस्तक्षेप न करतेहों । हमारी रायमें "भीखाजी अप्पाजी बनाम जगन्नाथ विट्टल 10 Bom. H. C. 361." वाले मुकदमे में निश्चित किया हुआ सिद्धांत बिल्कुल ठीक है। यह कोई कानून नहीं है कि हर एक आदमी चाहे कितनी भी दूरका रिवर्जनर हो ऐसा दावा करे। दावा करनेका अधिकार सीमावद्ध होना चाहिये। अगर बहुत ही पास वाला रिनर्जनर काफी वजहके बिना दाबा करनेसे इनकार करे या अपने किसी कामसे वह वैसा दावा करनेके अयोग्य हो या विधवाकी नाजायज़ कार्रवाई उसने मंजूर कर ली हो, तब उसके बाद वाला रिवर्जनर दावा करने का अधिकारी होगा, देखो-गुलाबसिंह कुंवर बनाम राव करनसिंह 14 M. I. A. 176-193; 10 B. L. R. 1-8. दूर के रिवर्जनरके ऐसा दावा करनेपर अदालत अपने अधिकारसे यह विचार करेगी कि मुद्दईको ऐसा दावा करने का अधिकार देना चाहिये या नहीं, और यह मुमकिन है कि अदालत उसके पहिलेके रिवर्जनर या रिवर्जनरोंको मुकदमे में फरीक नावे 8 I. A 14-22; 6 Cal. 764; 8 Cal. L. R. 381, to 386.
SR No.032127
Book TitleHindu Law
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shukla
PublisherChandrashekhar Shukla
Publication Year
Total Pages1182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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