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________________ उत्तराधिकार [ नवां प्रकरण संसारको बिल्कुल छोड़ दिया और अपनी मौरूसी जायदाद के हक़ त्यागदिये । इस नज़ीर में यह भी कहा गया है कि जो पक्षकार यह बयान करे कि उसने संसार नहीं छोड़ा तो साबित करनेका बोझ उसी पक्षकारकी गरदनपर है । ८०६ लेकिन एक बैरागी साधू जिसने संसारको न छोड़ा हो कुटुम्बमें जायदादका हक़ पाने से बंचित नहीं होलकता यदि कोई रवाज इसके विरुद्ध साबित न हो, देखो - 24 P. R 1880; ऐसे मामलेमें उचित विचार्य विषय ( तनकीह ) यह है कि 'क्या अमुक आदमी फक़ीर या साधू होजाने पर संसारके छोड़ देने का इरादा करता था' ? और 'क्या उसने संसार छोड़ दिया ?' इसके साबित करनेका बोझ जो बयान करे कि 'मैंने संसारको नहीं छोड़ा' उसी पर होगा - 7 P. R. 1892, कोई हिन्दू वैरागी होजानेपर भी जायदादपर अगर अपना क़ब्ज़ाबनाये रखना चाहे या अपने हक़की जायदाद में अपना स्वत्व स्वीकार करता रहे तो उसके उत्तराधिकारके स्वत्व नहीं नष्ट होंगे। देखो - 10 W. R. 1721 B. L. R. A. C. 114; 1 W. R. 209; 15 W. R. 197; 1878 Select case. Part 8 No. 39; 1879 Select case P. 8 No. 40; और देखो इस किताबकी दफा ६४२ । दफा ६६१ बार सुबूत जो पक्षकार वारिसको अयोग्य बयान करता हो उसीपर बार सुबूत रहेगा, देखो - रामविजय बहादुरसिंह बनाम जगतपालसिंह 17 I. A. 173; 18 Cal. 111; जब किसी पक्षकार की तरफसे यह कहा जाता हो कि अमुक पुरुष, किसी असाध्य रोग, या अपनी दूसरी अयोग्यताके कारण जायदादका वारिस होने से वंचित रखाजाय तो उस पक्षकारको बहुत मज़बूत सुबूत इस बातका देना होगा कि जिस समय उसे जायदाद मिलनेका हक़ पैदा हुआ है वह वैसी बीमारी या अयोग्यता रखता था देखो - 9 O. C. 352; 18 W. R. 375; 22 W. R. 348; 21 W. R. 249; 2 W. R. 125; विधवाके विषयमें देखो -1 B. H. C. 66. दफा ६६२ वारिस अपना हक़ छोड़ सकता है जब किसी वारिसको जायदाद पानेका हक़ पैदा होजाय या पैश होने वाला हो दोनों सूरतों में वह अपना हक़ छोड़ सकता है । देखो-गोसांई टीकमजी बनाम पुरुषोत्तमलालजी 3 Agra 238.
SR No.032127
Book TitleHindu Law
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shukla
PublisherChandrashekhar Shukla
Publication Year
Total Pages1182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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