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________________ ७८५ उत्तराधिकार [नवां प्रकरण मिलेगी 4 Cal 543 यह नियम किसी महन्तके चेलेसे कुछ भी सम्बन्ध नहीं रखेगा देखो-14 C. W. N. 191. - अगर किसी सन्यासी या यतिका योग्य शिष्य अपने गुरुको छोड़ कर किसी दूसरे स्थानमें चला गया हो और वह वहींपर इधर उधर भ्रमण करता रहा हो तथा उसने अपने सब कर्तव्य जो गुरु और शिष्यके मध्यमें होना चाहिये तोड़दिये हों या वेष बदल दिया हो तो उसे अपने गुरुकी जायदाद उत्तराधिकारमें नहीं मिलेगी, वह उस सन्यासी या यतिका वारिस नहीं हो सकेगा। देखो-4 N. W. P. 101; मानागया है कि कोई शिष्य किसी संन्यासी या यतिका वारिस नहीं हो सकता जब तक कि वह बिरजहवन, न करे देखो-2 Indian Cases 385; 14 C. W. N. 191. शिष्य या चेला-जब कोई आदमी सन्यासी या यति या गोसांई पंथ के अन्दर आना चाहता है तो उसे कुछ साधारण कृत्य करना होंगे जैसे शिर के बाल घुटाना, स्नान करना, उस पंथके कपड़े पहिनना, और नया नाम रखना । तब वह श्राद्मी उस पंथकी परीक्षाके अन्दर आता है। जब वह एक या दो वर्ष अपनेको वैसा बनाले और उस पथकी सब रसमोंको पूरा करले और मूलमन्त्र द्वारा 'बिरजहवन' आदि करले तो समझा जायगा कि वह आदमी पूर्ण शिष्य या चेला होगया। जब तक पूर्ण शिष्य नहीं हआ तब तक वह आदभी अपने परिवारमें लौट सकता है, पूर्ण हो जानेके पश्चात् प्रायः लौटना नहीं होता। यह भी माना गया है कि अगर किसी महन्त या गुरू या चेला आदिने किसी दूसरी तरहसे केवल नामकी उपाधि मात्र प्राप्त करली हो और वह सब कृत्ये जो उस पंथके लिये आवश्यक थे न किये हों तो सिर्फ नामकी उपाधि मात्रसे वह महन्त या गुरू या चेला आदि नहीं माना जायगा देखो-2 Ind. Cases 385. '. गोसांई-29 All. 109; 3 All. L. J. 717. में माना गया कि यदि किसी गोसांई के चेलेने, चेला होनेके पश्चात् एक वर्ष तक 'ज्योति' की उपासना की हो तब वह सत् शिष्य माना जा सकता है। अगर ऐसा न किया हो तो उसे उत्तराधिकारमें जायदाद नहीं मिलेगी। गोसांईकी जायदादका उत्तराधिकार पूर्णतया हिन्दूलॉसे नहीं निश्चित किया जाता बक्लि गोसाइयोंकी भाई बन्दीके निश्चित रवाज परसे निश्चित किया जाता है 16All.191;21 I. A. 17 जो गोसांई स्वयं और अपने कुटुम्बको दुनियांके धन्धोंके द्वारा भरण पोषण करता हो और उसका सम्बन्ध किसी मठ या मन्दिरसे न हो तो ऐसा समझा जायगा कि वह एक विशेष दर्जेका आदमी है उसकी वरासत उसके खानदानके रवाजके अनुसार होगी, देखो-1878 Select CasePart. 8No. 38. गोसांई और गोस्वामीमें कुछ भेद है किन्तु यदि दोनों दुनियांके धन्धोंसें भरण पोषण करते हों तो एकसां हालत होगी।
SR No.032127
Book TitleHindu Law
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shukla
PublisherChandrashekhar Shukla
Publication Year
Total Pages1182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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