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________________ दफा ६४२] कानूनी वारिस न होनेपर उत्तराधिकार ७७ कुटी या गद्दीके रवाजके अनुसार होगा। कोई आदमी साधू या फकीर उस वक्त तक नहीं माना जायगा जब तक कि वह दुनियांके सब आरामोंसे अलहदा न हो गया हो और दरहकीकत दुनियांके मुकाबिलेमें मर न गया हो। अगर कोई आदमी असलियतमें साधू हो जाय तो वह दुनियांकी दृष्टिमें मर जाता है और ऐसी सूरतमें उसकी सब जायदाद उसके कानूनी वारिसको फौरन मिल जाती है। और अगर वह किसी मठ या कुटी या गद्दीमें दाखिल हो गया हो तो उस साधूसे फिर उस जायदादसे कुछ सरोकार नहीं रहता जिसपर वह साधू होनेसे पहिले काबिज़ था-देखो दफा ६६०. अगर कोई पूरा पूरा साधू नहीं हुआ या उसने अपना लगाव दुनिया से नहीं तोड़ा, और वह दुनियांकी दृष्टिमें दुनियांसे अलहदा नहीं हुआ तो इस किस्मका साधू चाहे जिस नामसे वह कहा जाता हो ऐसा है कि मानो उसने मज़हबी कोई उपाधि धारणकी है। ऐसी सूरतमें वह अपनी जायदाद से अलहदा नहीं समझा जायगा और न उसके वारिस उसकी जायदाद पावेंगे। उसकी सब जायदाद उसीके कब्जेमें रहेगी। देखो-2 W Macn. 1013 मधुबन बनाम हरी S. D. of 1852, 1089; अमीना बनाम राधाविनोद S.D. of 1856, 596%, खुदीराम बनाम रुखिनी 15 Suth 197 जगन्नाथ बनाम विद्यानन्द 7 B.L. R. (A.C.J.) 114; S. C. 10 Suth. 1728 दुखराम बनाम लक्षमण 4 Cal 954. शास्त्रोंमें माना गया है कि शूद्र कोमका कोई आदमी साधू या सन्यासी नहीं हो सकता इस लिये उसकी जायदादका उत्तराधिकार हमेशा कानून के अनुसार होगा जबतक कि कोई सुबूत आम, या खास रवाजका न पेश किया जाये। मतलब यह है कि जब कोई शूद्र कौमका आदमी साधू हो गया हो तो साबित करना चाहिये कि उसके खानदानमें या उसके खास कुटुंबमें ऐसा रवाज है कि साधू होनेपर उसकी जायदाद वारिसको मिल जाती है देखो-धर्मपूरम पंडा समाधी बनाम बीरा पांडियाम 22 Mad 302, 18 Indian Cases 474, 'स्त्री' के संसार त्यागके विषयमें देखो दफा ७११. सन्यासी या यती किसी संन्यासी या यतीके मरनेके पश्चात् उसकी जायदाद उसके योग्य शिष्य या चेलेको मिलेगी देखो-4 C. 9545 4 C. L. R. 49; 4 0. 954; 1 All. 539; 21 W. R. 340; 10 W. R. 172. 'योग्य शिष्य' अगर ऐसे दो शिष्य हों एक तो ऐसा हो जो मृत संन्यासी या यतीके साथ रहा है और उसकी सेवा सुश्रूषा आदि करता रहाहै और अपने गुरुके गुण प्राप्त कर चुका है दूसरा अजनबी है किन्तु उसमें भी समान गुण है वहां पर यह नियम लागू होगा कि अजनबीसे पहले जायदाद साथ रहने वाले शिष्यको
SR No.032127
Book TitleHindu Law
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shukla
PublisherChandrashekhar Shukla
Publication Year
Total Pages1182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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