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________________ 'उत्तराधिकार [ नवां प्रकरण rammar (१) आत्मबन्धु-वह हैं जो अपनी, अपने बापकी, दादाकी, नाना की औलादमें बन्धु होते हैं यानी अपने, और नम्बर १, २ तथा नम्बर ८ की औलादमें जो बन्धु होते हैं। (२) पितृबन्धु--पितृपक्षके बानीके पूर्वजोंकी औलादमें जो बन्धु होते हैं यानी नं० ३, ४, ५, ६, ७ वाले पूर्वजोंकी औलादमें जो बन्धु होते हैं । (३) मातृवन्धु-माताकी तरफके बाकीके पूर्वजोंकी औलादमें जो बन्धु होते हैं यानी नं० ६ से १२ तककी औलादमें जो बन्धु होते हैं। दफा ६३८ मिताक्षरा स्कूल के अनुसार बन्धु __ यह ध्यान रखना कि मिताक्षरामें जो । बन्धु बताये गये हैं वे उदाहरणकी तरहपर माने जाते हैं (देखो दफा ५६७ ६३४) मिताक्षराला और मयूखला के बन्धुओंमें अन्तर नहीं है देखो 19 Bom. 631. मृत पुरुषके बन्धु तीन तरह के होते हैं अर्थात् (१) परिवारकी लड़कियोंके लड़के; (२) परिवारकी लड़कियोंके लड़कों के लड़के (३) परिवारकी लड़कियोंकी लड़कियों के लड़के । ये तीनों तरहके बन्धु दफा ६३५-७, ८ के अनुसार जायदाद पाते हैं। तक्त तीन तरहके बन्धु इस प्रकार समझिये। पिताकी | पितामहकी तीन तरहके बन्धु मृत पुरुषकी शाखा शाखा २-पुत्रकी लड़कीके लड़के एवं कियोंक लड़के । ३-पौत्रकी लड़कीके लड़के एवं २-परिवारकी लड़। १-लड़कियोंके लड़कोंक लड़क कियोंके लड़कों| २-लड़कोंकी लड़कियोंके लड़- एवं के लड़के कोंके लड़के ३-परिवारकी लड-१-लड़कियोंकी लड़कियोंक | २-लड़कियों की लड़कियोंकी शाखा १-परिवारकी लङ- १-लड़कीके लड़के कियोंकी लडकि लड़के योंके लड़क । लड़कियोंके लड़के इसी सिद्धान्तके अनुसार दफा ६३६ के चारों नकशे देखिये। मिताक्षरालॉके अनुसार डाक्टर जोगेन्द्रनाथ भट्टाचार्यने अपने हिन्दूलॉके दूसरे एडीशन पेज ५६०-४६२में तथापंथराजकुमार सर्वाधिकारीने अपने हिन्दूला आव् इनहेरीटेन्सके पेज७०७,७१२ (१), (b) में बन्धुओंके रिक्थाधिकारका जो क्रम माना है नीचे लिखता हूं। यही क्रम सर अर्नेस्ट जान दिवेलियन,डीसीव्यल० नेअपने हिन्दूलॉके दूसरे एडीशन पेज ३८२-३८४ में और सी०यस०रामकृष्ण बी०ए०बी०यल ने अपने हिन्दूलॉ जिल्द २ सन १९१३ ई० पेज १६२-१६५
SR No.032127
Book TitleHindu Law
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shukla
PublisherChandrashekhar Shukla
Publication Year
Total Pages1182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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