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________________ सपिण्डोंमें वरासत मिलनका क्रम सपिण्डको पहुसंगी। इस सिद्धान्तको मांडलीककी स्कीमसे धक्का पहुंचेगा इसलिये मैं इस अपीलको मय खर्चाके डिस्मिस करताई" ___ मतीजा यह निकला कि-मिताक्षरालों के अनुसार पितामहकी तीन पीढ़ियां, प्रपितामह और उसकी औलादसे पहिले वारिस होती हैं। यानी पितामहका प्रपौत्र, प्रपितामहके पौत्रसे पहिले जायदाद पानेका अधिकारी है। इसीलिये ऊपरकी प्रधान लाइनमें तीन पीढ़ी तक वरासत चलकर ठहर जाती है जैसा कि ऊपरके नक्शे दफा ६२४ में दिया गया है। दफा ६२६ सपिण्डोंकी वरासतका दूसरा सिद्धान्त मदरास हाईकोर्ट के फैसले सुरैय्या बनाम लक्ष्मीनरासामा (1881) 5 Mad. 291. चिन्नासामी बनाम कुंजू (1910) 35 Mad.152.और मांडलीक हिन्दूलॉ पेज 378 के अनुसार यह मानामया है कि हरएक मिनशाखाकी लाइन दो पीढ़ीके बाद ठहर जाती है। दो पीढ़ीके बाद ठहर जानेका यह मतलब सम. झिये कि पहिली प्रधान लाइनमें नीचेकी तरफ तीन पीढ़ी तक जाती है।पीछे ऊपरकी प्रधान लाइनमें पहिली पीढ़ीकी मिन्न शाखामें (बापकी) दो पीढ़ी तक, इसी तरहपर ऊपरकी प्रधान शाखा ६ पीढ़ी तक दो, दो, पीढ़ी।पश्चात् प्रधान लाइनमें नीचेकी तरफ चौथी, पांचवीं और छठवीं पीढ़ी तक । उसके बाद ऊपरकी प्रधान लाइनमें पिताकी लाइनकी मित्र शाखामें तीसरी, चौथी, पांचवीं और छठवीं पीढ़ी तक। इसी तरह पर प्रधान लाइनकी मिन्न शास्त्रामें अन्त तक चार, चार पीढ़ीमें चलकर ५७ पीढ़ीमें समाप्त हो जाती है। इस सिद्धान्तके अनुसार जायदाद पानेका क्रम, यह होगा । देखो (१) मृत पुरुषकी नीधेकी शास्त्रामें पहिली तीन पीढ़ी, पुत्र, पौत्र, . प्रपौत्र। (२) विधवा, लड़की, लड़कीका लड़का। (३) मो, बाप और उनकी मिन्न शाखा वाली लाइनमें पहिली दो पीढ़ी यानी उनके पुत्रं, पौत्र। (१) बांपैकी मा, बापका बोप, (इस जगहके बाद वारिस देखो ऐक्ट नं०२ सन्१९२६ई. इस प्रकरणके अन्तमें) और उनकी पहिली दो पीढ़ी यानी उसके पुत्र, पौत्र।
SR No.032127
Book TitleHindu Law
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shukla
PublisherChandrashekhar Shukla
Publication Year
Total Pages1182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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