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________________ दफा ६२५] सपिण्डोमें वरासत मिलनेका क्रम ७४६ एडीशन 290; रूमसे चार्ट आफ इन्हेरीटेन्स 43, मेगनाटन हिन्दूला 28; कोलबूक्स डाइजेस्ट आफ हिन्दूलॉ Vol II. 542 (pl.) 417; वीरमित्रोदय मि० सेटलोरका अनुवाद 420, 423 तक।.. प्रारम्भिक अदालतने, कल्याणराय बनाम रामचन्द्र 24 All. 128 को मान कर इस केसका फैसला किया। मगर इस केससे (24 All. 128 ) कोई श्राम सिद्धान्त नहीं निकलता। वह जी०सी० सरकारके हिन्दूलॉके पेज 288में विचार किया गया है। इसका कानून पूरे तौरपर चिन्तामणि बनाम कंजूपिलाई के केसमें बहस किया गया था। और वह फैसला वादीके पक्षमें है। प्रतिवादी रिस्पाडेन्टकी तरफसे आनररेबल पं० मदनमोहन मालवीय और सतीशचन्द्रवनरजी, और डा० तेजबहादुर सपरूने बहसकी कि मनुके अध्याय 8-१८६, १८७ में यह आम कायदा माना गया है कि वरासतमें तीन पीढ़ी होती हैं । याज्ञवल्क्य अ०२-१३५, १३६ का अनुवाद जैसा कि मांडलीकने किया है गलत है, (च) और (एव) शब्दका अनुवाद बिल्कुल नहीं किया और श्लोकमें जो (तथा ) शब्द था उसे 'भ्रातरौं' के साथ लाना चाहिये था। सबसे मुख्य शब्द ( अपुत्रस्य) है और इस जगह (पुत्र) शब्दके अर्थमें पुत्र, पौत्र, प्रपौत्र शामिल है। इस बातसे कोई इनकार नहीं करता । मांडलीकका याज्ञवल्क्य २२२ देखो। यह सही है कि मिताक्षरामें साफ तौरपर परपोतेका जिकर नहीं किया गया लेकिन इस भूलको 'वीर मित्रोदय' पूरी कर देता है, पुरानी पुस्तकों में जो वारिसोंकी लिस्ट पायी जाती है वह मुकम्मिल नहीं है सिर्फ उदाहरणार्थ है। और इसीलिये अगर कोई खास वारिस उनमें नहीं बताया गया हो तो इसका मतलब यह नहीं है कि वह वारिस नहीं होता। लड़कीके लड़केके बारेमें याज्ञवल्क्यमें कुछ नहीं बताया गया। संस्कृतमें बापके भाईके लिये एक खास शब्द है ( पितृव्य ) लेकिन ऐसा कोई दूसरा शब्द दादाके भाई और परदादाके भाईके बतानेके लिये नहीं है और यही बात है कि उन ग्रन्थोंमें खुलासा नहीं है। सपिण्डकी रिश्तेदारी सातवीं डिगरीमें समाप्त हो जाती है और मिताक्षरामें ऊपरकी तरफ सात पीढ़ी तक बताई गई है तथा मनुस्मृति ५-६०; जे०सी० घोष हिन्दूला ४१, ५७, ५८, ६५, ६६, ७८, ६७, १६६, १७०, १८३, १८४; जे०सी० घोषने देवल और पराशरके बचनोंको जितना बताया है उससे यह मालूम होता है कि नीचे तीन पीढ़ी तक शरीरकी एकता रहती है अगर अपीलाट वादीकी बहसको माना जाय तो परपोता सगोत्र सपिण्ड भी नहीं होगा। याज्ञवल्क्यको सारी वरासत एकही श्लोकमें बताना थी और इस लिये वह ( तत्सुता) को औलादके अर्थमें लाये हैं । मिताक्षरा (पितृ संतान) शब्दको पिताकी लाइन बतानेके लिये काममें लाये हैं, (संतान ) का अर्थ राचव बनाम कलिङ्ग अप्पा (1822) I. L. R. 16 Bom, 716 में 'एक दूसरे
SR No.032127
Book TitleHindu Law
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shukla
PublisherChandrashekhar Shukla
Publication Year
Total Pages1182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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