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________________ दफा ६१०-६११] सपिण्डोमें वरासत मिलनेका क्रम अर्थात् 'भाईयोंके अभावमें उनके पुत्र' और 'भाईके पुत्रोंके अभावमें गोत्रज धन पाते हैं। यहांपर भाईके लड़केका लड़का छूट गया यांनी साफ तौरपर नहीं कहा गया । इस विषय पर बड़ा विवाद है। देखो दफा ५६६, ६२३, ६२४, ६२५. (३) इलाहाबाद हाईकोर्टने भाई के लड़केके लड़केका हक, भाईके लड़के के पीछेही स्वीकार किया है। अर्थात् भाईका पोता, भाईके लड़केके न होनेपर जायदाद पानेका अधिकारी माना गया है। देखो-कल्याणराय बनाम रामचन्द्र (1901 ) 24 All. 128. बिल्कुल इसी क़िस्मका एक बहुत बड़ा मुकद्दमा हालमें इलाहाबाद हाईकोर्टसे फैसल हुआ है और प्रिवीकौंसिलमें वह फैसला बहाल रहा । इस मुक़द्दमेंके वाक़ियात यह थे कि वादी परदादाका पोता था और प्रतिवादी दादाका परपोता था। मुक़द्दमा उत्तराधिकारका था। फैसलोंमें बहुत छान बीन करके माना गया कि मिताक्षरालॉके अनुसार पितामहकी तीन पीढ़ियाँ प्रपितामह और उसकी औलादसे पहिले वारिस होती हैं एवं पितामहका प्रपौत्र प्रपितामहके पौत्रसे पहिले जायदाद पानेका अधिकारी है; देखो-बुधासिंह बनाम ललतूसिंह 34 All. 663. इस मुकद्दमेंका ज्यादा खुलासा हाल अलहदा दिया गया है। देखो दफा ६२५ इस केससे यह नतीजा निकला कि भाईका पोता, भाईके लड़केके पश्चात् वारिस होता है। .. (४) मदरास हाईकोर्टने भाईके पोतेसे पहिले दादीका हक स्वीकार किया है। अर्थात् भाईके लड़केके बाद दादीको जायदाद पहुंचती है (देखो नक्शा दफा ६२७ ) इस फरकका कारण देखो दफा ६३०. (५) बम्बई हाईकोर्टको छोड़ कर सगा, सौतेलेसे पहिले जायदाद पाता है। यह कायदा श्राम माना गया है। मगर बम्बई हाईकोर्ट के अनुसार मिता. क्षरा और मयूख दोनोके केसोंमें सहोदरको सौतेलेसे प्रधानता देनेका कायदा भाई और भाईके लड़कोंके लिये ही महदूद किया गया है और दूसरी भिन्न शाखाओंके रिश्तेदारोंके लिये नहीं; जैसे चाचा, चाचाके लड़के, वगैरा; देखो-सामन्त बनाम अमरा 6 Bom. 394, 397; 24 Bom. 317. ___ इलाहाबाद हाईकोर्ट के अनुसार सौतेलेसे सहोदरकी प्रधानता सब भिन्न शाखाओंके सब रिश्तेदारों के लिये लागू की गई है । इलाहाबादके केसोंके 'प्रपितामहके सहोदर भाईके पोते' को 'प्रपितामहके सौतेले भाईके पोते, से प्रधानता दी गई है 19 All. 216. (६) भाईके पोतेको जबजायदाद मिलती है तो पूरे अधिकारों के साथ मिलती है। उसमें सरवाइवरशिपका हक लागू नहीं होता ( देखो दफा ५६४, ५७०, ५७२ ) तथा सबको बराबर हिस्सा मिलता है। 93
SR No.032127
Book TitleHindu Law
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shukla
PublisherChandrashekhar Shukla
Publication Year
Total Pages1182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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